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उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय में देश के महापुरुषों की जयंती मनाए जाने की श्रृंखला में संस्कृत के आदिकवि महर्षि बाल्मीकि की जयंती मनाई


उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय में देश के महापुरुषों की जयंती मनाए जाने की श्रृंखला में संस्कृत के आदिकवि महर्षि बाल्मीकि की जयंती मनाई गई।

रिपोर्ट  - allnewsbharat.com

हरिद्वार। उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय में देश के महापुरुषों की जयंती मनाए जाने की श्रृंखला में संस्कृत के आदिकवि महर्षि बाल्मीकि की जयंती मनाई गई। महर्षि बाल्मीकि जयंती के अवसर पर आयोजित राष्ट्रीय ई संगोष्ठी में विद्वानों ने महर्षि के जीवन से जुड़े सभी प्रसंगों पर विचार प्रस्तुत किये। संगोष्ठी के मुख्यातिथि विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन मध्यप्रदेश के पूर्व संस्कृत विभागाध्यक्ष प्रोफेसर केदार नारायण जोशी ने कहा कि सामान्य मानव की भाषा में किसी भी भाषा के प्रथम कविमहर्षि बाल्मीकि ही थे,उन्होंने भगवान राम के चरित्र को अत्यंत गहराई से देखा इसलिए बाल्मीकि को राम के समकालीन माना जा सकता है। भगवान राम द्वारा सीता के परित्याग की वेदना को महर्षि बाल्मीकि ने हृदय से महसूस किया। राम के इस निर्णय की कठोरता पर बाल्मीकि ने द्रवित होकर भरत से अपनी भावनाएं भी प्रकट कीं। प्रोफेसर जोशी ने कहा कि भगवान राम से सन्दर्भित जितनी भी रचनाएं अब तक हुई हैं वह सभी बाल्मीकि रामायण से प्रेरित हैं। संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रोफेसर देवीप्रसाद त्रिपाठी ने कहा कि भगवान राम के जीवन से जुड़े विषय हम सभी महर्षि बाल्मिकी की रामायण से ही जान पाए हैं,तुलसीदास कृत रामचरितमानस भी बाल्मीकि रामायण से ही प्रेरित है।उन्होंने कहा कि महर्षि बाल्मीकि समरसता के मूलक थे, महर्षि बाल्मीकि के कारण ही भगवान राम को मानने वाली पूरी सभ्यता में संस्कारों का संचार हुआ।कुलपति ने कहा कि हमें अपने आचरण और व्यवहार में महर्षि बाल्मीकि द्वारा बताए गए संस्कारों को उतारने की जरूरत है। कुलपति ने महर्षि बाल्मीकि को समाज के सभी वर्गों का प्रेरक बताया। संगोष्ठी में 100 से अधिक प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया। छात्र कल्याण अधिष्ठाता डॉ लक्ष्मी नारायण जोशी ने कार्यक्रम का संचालन,सहायक आचार्य सुशील चमोली ने तकनीकी सहयोग किया। कुलसचिव गिरीश कुमार अवस्थी ने सभी प्रतिभागियों का आभार प्रकट करते हुए धन्यवाद ज्ञापित किया।

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