नाम - धनपत राय शà¥à¤°à¥€à¤µà¤¾à¤¸à¥à¤¤à¤µ उरà¥à¤« नवाब राय उरà¥à¤« मà¥à¤‚शी पà¥à¤°à¥‡à¤®à¤šà¤‚द। जनà¥à¤®à¤¦à¥ƒ31 जà¥à¤²à¤¾à¤ˆ 1880 बनारस। पिता दृअजीब राय। मातादृआनंदी देवी। पतà¥à¤¨à¥€à¤¦à¥ƒà¤¶à¤¿à¤µà¤°à¤¾à¤¨à¥€ देवी।
रिपोर्ट -
à¤à¤¾à¤°à¤¤ के ‘‘गोरà¥à¤•à¥€â€˜â€˜ - मà¥à¤‚शी पà¥à¤°à¥‡à¤®à¤šà¤‚द की 139 वीं जयनà¥à¤¤à¥€ पर विनमà¥à¤° शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤‚जलि व सादर नमन । नाम - धनपत राय शà¥à¤°à¥€à¤µà¤¾à¤¸à¥à¤¤à¤µ उरà¥à¤« नवाब राय उरà¥à¤« मà¥à¤‚शी पà¥à¤°à¥‡à¤®à¤šà¤‚द। जनà¥à¤®à¤¦à¥ƒ31 जà¥à¤²à¤¾à¤ˆ 1880 बनारस। पिता दृअजीब राय। मातादृआनंदी देवी। पतà¥à¤¨à¥€à¤¦à¥ƒà¤¶à¤¿à¤µà¤°à¤¾à¤¨à¥€ देवी। पà¥à¤°à¥‡à¤®à¤šà¤‚द (३१ जà¥à¤²à¤¾à¤ˆ, १८८० - ८ अकà¥à¤Ÿà¥‚बर १९३६) हिनà¥à¤¦à¥€ और उरà¥à¤¦à¥‚ के महानतम à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ लेखकों में से à¤à¤• हैं। मूल नाम धनपत राय शà¥à¤°à¥€à¤µà¤¾à¤¸à¥à¤¤à¤µ वाले पà¥à¤°à¥‡à¤®à¤šà¤‚द को नवाब राय और मà¥à¤‚शी पà¥à¤°à¥‡à¤®à¤šà¤‚द के नाम से à¤à¥€ जाना जाता है। उपनà¥à¤¯à¤¾à¤¸ के कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में उनके योगदान को देखकर बंगाल के विखà¥à¤¯à¤¾à¤¤ उपनà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¤•à¤¾à¤° शरतचंदà¥à¤° चटà¥à¤Ÿà¥‹à¤ªà¤¾à¤§à¥à¤¯à¤¾à¤¯ ने उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ उपनà¥à¤¯à¤¾à¤¸ समà¥à¤°à¤¾à¤Ÿ कहकर संबोधित किया था। पà¥à¤°à¥‡à¤®à¤šà¤‚द ने हिनà¥à¤¦à¥€ कहानी और उपनà¥à¤¯à¤¾à¤¸ की à¤à¤• à¤à¤¸à¥€ परंपरा का विकास किया जिसने पूरी सदी के साहितà¥à¤¯ का मारà¥à¤—दरà¥à¤¶à¤¨ किया। आगामी à¤à¤• पूरी पीà¥à¥€ को गहराई तक पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µà¤¿à¤¤ कर पà¥à¤°à¥‡à¤®à¤šà¤‚द ने साहितà¥à¤¯ की यथारà¥à¤¥à¤µà¤¾à¤¦à¥€ परंपरा की नींव रखी। उनका लेखन हिनà¥à¤¦à¥€ साहितà¥à¤¯ की à¤à¤• à¤à¤¸à¥€ विरासत है जिसके बिना हिनà¥à¤¦à¥€ के विकास का अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ अधूरा होगा। वे à¤à¤• संवेदनशील लेखक, सचेत नागरिक, कà¥à¤¶à¤² वकà¥à¤¤à¤¾ तथा सà¥à¤§à¥€ (विदà¥à¤µà¤¾à¤¨) संपादक थे। बीसवीं शती के पूरà¥à¤µà¤¾à¤°à¥à¤¦à¥à¤§ में, जब हिनà¥à¤¦à¥€ में की तकनीकी सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾à¤“ं का अà¤à¤¾à¤µ था, उनका योगदान अतà¥à¤²à¤¨à¥€à¤¯ है। पà¥à¤°à¥‡à¤®à¤šà¤‚द के बाद जिन लोगों ने साहितà¥à¤¯ को सामाजिक सरोकारों और पà¥à¤°à¤—तिशील मूलà¥à¤¯à¥‹à¤‚ के साथ आगे बà¥à¤¾à¤¨à¥‡ का काम किया, उनमें यशपाल से लेकर मà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤¬à¥‹à¤§ तक शामिल हैं। पà¥à¤°à¥‡à¤®à¤šà¤¨à¥à¤¦ की रचना-दृषà¥à¤Ÿà¤¿ विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ साहितà¥à¤¯ रूपों में पà¥à¤°à¤µà¥ƒà¤¤à¥à¤¤ हà¥à¤ˆà¥¤ बहà¥à¤®à¥à¤–ी पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤à¤¾ संपनà¥à¤¨ पà¥à¤°à¥‡à¤®à¤šà¤‚द ने उपनà¥à¤¯à¤¾à¤¸, कहानी, नाटक, समीकà¥à¤·à¤¾, लेख, समà¥à¤ªà¤¾à¤¦à¤•à¥€à¤¯, संसà¥à¤®à¤°à¤£ आदि अनेक विधाओं में साहितà¥à¤¯ की सृषà¥à¤Ÿà¤¿ की। पà¥à¤°à¤®à¥à¤–तया उनकी खà¥à¤¯à¤¾à¤¤à¤¿ कथाकार के तौर पर हà¥à¤ˆ और अपने जीवन काल में ही वे ‘उपनà¥à¤¯à¤¾à¤¸ समà¥à¤°à¤¾à¤Ÿâ€™ की उपाधि से समà¥à¤®à¤¾à¤¨à¤¿à¤¤ हà¥à¤à¥¤ उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने कà¥à¤² १५ उपनà¥à¤¯à¤¾à¤¸, ३०० से कà¥à¤› अधिक कहानियाà¤, ३ नाटक, १० अनà¥à¤µà¤¾à¤¦, ॠबाल-पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤•à¥‡à¤‚ तथा हजारों पृषà¥à¤ ों के लेख, समà¥à¤ªà¤¾à¤¦à¤•à¥€à¤¯, à¤à¤¾à¤·à¤£, à¤à¥‚मिका, पतà¥à¤° आदि की रचना की लेकिन जो यश और पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤·à¥à¤ ा उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ उपनà¥à¤¯à¤¾à¤¸ और कहानियों से पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ हà¥à¤ˆ, वह अनà¥à¤¯ विधाओं से पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ न हो सकी। यह सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ हिनà¥à¤¦à¥€ और उरà¥à¤¦à¥‚ à¤à¤¾à¤·à¤¾ दोनों में समान रूप से दिखायी देती है। आरमà¥à¤à¤¿à¤• जीवनरू मà¥à¤‚शी पà¥à¤°à¥‡à¤®à¤šà¤¨à¥à¤¦ का जनà¥à¤® 31 जà¥à¤²à¤¾à¤ˆ 1880 को à¤à¤¾à¤°à¤¤ के उतà¥à¤¤à¤° पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ राजà¥à¤¯ के वाराणसी शहर के निकट लमही गाव में हà¥à¤† था इनके पिता का नाम अजायबराय था जो की लमही गाव में ही डाकघर के मà¥à¤‚शी थे और इनकी माता का नाम आनंदी देवी था मà¥à¤‚शी पà¥à¤°à¥‡à¤®à¤šà¤¨à¥à¤¦ का वासà¥à¤¤à¤µà¤¿à¤• नाम धनपतराय शà¥à¤°à¥€à¤µà¤¾à¤¸à¥à¤¤à¤µ था लेकिन इनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ मà¥à¤‚शी पà¥à¤°à¥‡à¤®à¤šà¤¨à¥à¤¦ और नवाब राय के नाम से जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ जाना जाता है। पà¥à¤°à¥‡à¤®à¤šà¤¨à¥à¤¦ का बचपन काफी कषà¥à¤Ÿà¤®à¤¯ बिता महज सात वरà¥à¤· पूरा करते करते ही इनकी माता का देहांत हो गया ततà¥à¤ªà¤¶à¥à¤šà¤¾à¤¤ इनके पिता की नौकरी गोरखपà¥à¤° में हो गया जहा पर इनके पिता ने दूसरी शादी कर ली लेकिन कà¤à¥€ à¤à¥€ पà¥à¤°à¥‡à¤®à¤šà¤¨à¥à¤¦ को अपनी सौतेली माठसे अपने माठजैसा पà¥à¤¯à¤¾à¤° नही मिला और फिर चैदह साल की उमà¥à¤° में इनके पिताजी का à¤à¥€ देहांत हो गया इस तरह इनके बचपन में इनके उपर मà¥à¤¸à¥€à¤¬à¤¤à¥‹à¤‚ का पहाड़ टूट पड़ा। धनपतराय की उमà¥à¤° जब केवल आठसाल की थी तो माता के सà¥à¤µà¤°à¥à¤—वास हो जाने के बाद से अपने जीवन के अनà¥à¤¤ तक लगातार विषम परिसà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ का सामना धनपतराय को करना पड़ा। पिताजी ने दूसरी शादी कर ली जिसके कारण बालक पà¥à¤°à¥‡à¤® व सà¥à¤¨à¥‡à¤¹ को चाहते हà¥à¤ à¤à¥€ ना पा सका। आपका जीवन गरीबी में ही पला। कहा जाता है कि आपके घर में à¤à¤¯à¤‚कर गरीबी थी। पहनने के लिठकपड़े न होते थे और न ही खाने के लिठपरà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¥à¤¤ à¤à¥‹à¤œà¤¨ मिलता था। इन सबके अलावा घर में सौतेली माठका वà¥à¤¯à¤µà¤¹à¤¾à¤° à¤à¥€ हालत को खसà¥à¤¤à¤¾ करने वाला था। विवाह के à¤à¤• साल बाद ही पिताजी का देहानà¥à¤¤ हो गया। अचानक आपके सिर पर पूरे घर का बोठआ गया। à¤à¤• साथ पाà¤à¤š लोगों का खरà¥à¤šà¤¾ सहन करना पड़ा। पाà¤à¤š लोगों में विमाता, उसके दो बचà¥à¤šà¥‡ पतà¥à¤¨à¥€ और सà¥à¤µà¤¯à¤‚। पà¥à¤°à¥‡à¤®à¤šà¤¨à¥à¤¦ की आरà¥à¤¥à¤¿à¤• विपतà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ का अनà¥à¤®à¤¾à¤¨ इस घटना से लगाया जा सकता है कि पैसे के अà¤à¤¾à¤µ में उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ अपना कोट बेचना पड़ा और पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤•à¥‡à¤‚ बेचनी पड़ी। à¤à¤• दिन à¤à¤¸à¥€ हालत हो गई कि वे अपनी सारी पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤•à¥‹à¤‚ को लेकर à¤à¤• बà¥à¤•à¤¸à¥‡à¤²à¤° के पास पहà¥à¤‚च गà¤à¥¤ वहाठà¤à¤• हेडमासà¥à¤Ÿà¤° मिले जिनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने आपको अपने सà¥à¤•à¥‚ल में अधà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤• पद पर नियà¥à¤•à¥à¤¤ किया। अपनी गरीबी से लड़ते हà¥à¤ पà¥à¤°à¥‡à¤®à¤šà¤¨à¥à¤¦ ने अपनी पà¥à¤¾à¤ˆ मैटà¥à¤°à¤¿à¤• तक पहà¥à¤‚चाई। जीवन के आरंठमें आप अपने गाà¤à¤µ से दूर बनारस पà¥à¤¨à¥‡ के लिठनंगे पाà¤à¤µ जाया करते थे। इसी बीच पिता का देहानà¥à¤¤ हो गया। पà¥à¤¨à¥‡ का शौक था, आगे चलकर वकील बनना चाहते थे। मगर गरीबी ने तोड़ दिया दà¥à¤¯ महातà¥à¤®à¤¾ गांधी के आहà¥à¤µà¤¾à¤¨ पर उनà¥à¤¹à¥‹à¤¨à¥‡ 1921 में अपनी नौकरी छोड़ दी। नौकरी छोड़ने के बाद कà¥à¤› दिनों तक उनà¥à¤¹à¥‹à¤¨à¥‡ ने मरà¥à¤¯à¤¾à¤¦