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आठवें दिन देहरादून में पत्रकारों का धरना जारी


देहरादून में विगत आठ दिनों से चल रहे पत्रकारों के धरना , प्रदर्शन, ताला बन्दी, मशाल जुलूस की ओर दिलाना चाहता हूं,जिसके प्रति आपकी उदासीनता पत्रकारों में आक्रोश पैदा कर रही है ।

रिपोर्ट  - 

देहरादून में विगत आठ दिनों से चल रहे पत्रकारों के धरना , प्रदर्शन, ताला बन्दी, मशाल जुलूस की ओर दिलाना चाहता हूं,जिसके प्रति आपकी उदासीनता पत्रकारों में आक्रोश पैदा कर रही है । एक बार भी आपने आंदोलनकारी पत्रकारों को वार्ता हेतु बुलाने की आवश्यकता अनुभव नही की । सरकार व विभाग का अंहकार नुकसानदेह साबित होगा । अगर यही हालत चलते रहे तो आंदोलन उग्र रूप धारण कर सकता है, जिसकी जिम्मेदारी विभाग की होगी । यह भी हो सकता है कि राज्य के अन्य पत्रकार संगठन भी इस आंदोलन से जुड़ जाए । माना इस आन्दोलन को अभी तक मुख्य पत्रकार संगठनों का समर्थन प्राप्त नही है, लेकिन वे इस आंदोलन के विरुद्ध भी नही है ।प्रिंट मीडिया सूचीबद्धता नियमावली- 2016 के संशोधित परिशिष्ट- 4 के अनुसार महत्वपूर्ण अवसरों पर प्रकाशित कराए जाने वाले विज्ञापनों की सूची के क्रमांक 03 दिनांक 25 जुलाई श्रीदेव सुमन की पुण्यतिथि पर विगत 18 वर्षों से जारी होने वाला विज्ञापन का इस वर्ष काट दिया गया , इसको लेकर सभी पत्रकार संघठनो में रोष है, इसके विरोध में दिनांक 25 जुलाई को संयुक्त पत्रकार संघर्ष समिति ने अपर निदेशक को ज्ञापन सौंपा, कोई सकारात्मक जवाब न मिलने पर वो समिति आज तक आंदोलन रत है । नेशनलिस्ट यूनियन ऑफ जॉर्नलिस्ट ने 26 को महानिदेशक व अपर निदेशक को ज्ञापन दिया । देवभूमि पत्रकार यूनियन, रजि. व देवभूमि जॉर्नलिस्ट वेलफेयर एसोसिएशन रजि. ने 27 जुलाई को माननीय मुंख्यमंत्री, सूचना सचिव, महानिदेशक को इस सम्बंध में ज्ञापन दिया l 28 को श्रमजीवी पत्रकार यूनियन , हरिद्वार इकाई द्वारा सिटी मजिस्ट्रेट को ज्ञापन दिया । 29 को श्रमजीवी पत्रकार यूनियन, उत्तराखंड का एक प्रतिनिधि मंडल मुख्यमंत्री जी से उनके आवास पर मिला , जिसपर माननीय मुख्यमंत्री जी ने श्रीदेव सुमन जी का विज्ञापन जारी न किया जाना विभाग की एक बड़ी चूक माना, उन्होंने इस विज्ञापन की जल्द भरपाई करने का आश्वाशन भी दिया । वर्किग जॉर्नलिस्ट आफ इंडिया की उत्तराखंड इकाई द्वारा भी अपना विरोध जताया है । तीन चार अन्य छोटे बड़े संघठन संयुक्त पत्रकार संघर्ष समिति को अपना समर्थन दे चुके हैं । यह भी उल्लेखनीय है कि उक्त संघर्ष समिति में अधिकांशत् 90 प्रतिशत पोर्टल व शोशल मीडिया से जुड़े पत्रकार हैं, वर्तमान युग सोशल मीडिया का है । इससे सरकार की किरकिरी होने की सम्भावना बढ़ गई । यदि समय रहते इस समस्या का समाधान नहीं निकाला गया तो वे पत्रकार किसी भी हद तक जाने को ततपर हैं । इस आंदोलन के दौरान हमारे कुछ पत्रकार बन्धुओं ने यह भी प्रचारित किया कि उक्त आंदोलन नवागन्तुक महानिदेशक को दबाव में लेने के लिए सूचना निदेशालय के कुछ वरिष्ठ अधिकारियों की पत्रकारो के माध्यम से पूर्व नियोजित योजना हैं । जबकि इसकी सम्भावना कम ही दिखाई पड़ती है । कुछ हमारे पत्रकार भाई तो यहां तक कह गए कि सूचना विभाग से विज्ञापन मांगना पत्रकारों का कोई अधिकार नही है । उन से मुंझे कहना है कि उत्तराखंड की पहले विधान सभा के सत्र में अपने अभिभाषण में राज्य के लघु व मंझोले क्षेत्रीय समाचार पत्रों के पोषण की बात कही थी । प्रतिवर्ष राज्य व केंद्र सरकार अपने कार्यो के प्रचार व प्रसार हेतु विज्ञापन का बजट निर्धारित करती है । विज्ञापन वितरण में बड़ो का पोषण व छोटो का शोषण की नीति व पारदर्शिता का अभाव मूल विरोध का कारण हैं । हर बार 6 या 7 बड़े अखबारों को वर्गीकृत, समयकालीन व टेंडर आदि जारी करना आख़िर क्या संकेत करता है, हमे बताने की जरूरत नही है। विभाग के सभी नियम कानून सिर्फ लघु व मंझोले क्षेत्रीय समाचारपत्रों के लिए हैं । पत्रकारों में आक्रोश के यही कारण है । आये दिन पत्रकार समस्याओं से जूझते दिखाई पड़ते हैं । आशा है माननीय मुख्यमंत्री (सूचना मंत्री) , सूचना सचिव, महानिदेशक, अपर निदेशक आदि अधिकारीगण गम्भीरता से इस ओर ध्यान देंगे । डॉ. वी डी शर्मा, महासचिव, देवभूमि पत्रकार यूनियन, रजि. उत्तराखण्ड ।

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