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दिव्य पे्रम सेवा मिशन रजत जयंती वर्ष समापन समारोह में सहभाग किया।


परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने दिव्य पे्रम सेवा मिशन रजत जयंती वर्ष समापन समारोह में सहभाग किया। इस अवसर पर अन्य पूज्य संतों ने सहभाग कर उद्बोधन दिया।

रिपोर्ट  - allnewsbharat.com

ऋषिकेश, 26 मार्च। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने दिव्य पे्रम सेवा मिशन रजत जयंती वर्ष समापन समारोह में सहभाग किया। इस अवसर पर अन्य पूज्य संतों ने सहभाग कर उद्बोधन दिया। दिव्य प्रेम सेवा मिशन कुष्ट रोगियों की सेवा हेतु समर्पित एक उत्कृष्ट संस्था है। जिसकी स्थापना सन् 1997 में श्री आशीष गौतम जी ने की थी। स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि ’’परोपकार की भावना, सेवा और मानवीय मूल्यों के साथ जीवन जीने से ही आत्मिक शान्ति का मार्ग प्रशस्त होता हैैै।’’ शान्ति की स्थापना से तात्पर्य केवल आंतरिक एवं बाह्य संघर्षों से सुरक्षा और हमारी सीमाओं की रक्षा तक सीमित नहीं हैं बल्कि सामाजिक सुरक्षा तथा प्रत्येक व्यक्ति को मौलिक सुविधायें प्राप्त हो एवं सभी को गरिमामय जीवन जीने का अधिकार मिले यह जरूरी है और दिव्य प्रेम सेवा मिशन वर्षो से यह सेवा कार्य दिव्यता से कर रहा है। सर्वे भवन्तु सुखिनः”, परोपकार, शुचिता, प्रेम तथा करूणा आदि मूल्यों और सिद्धान्तों के साथ आशीष गौतम जी, संजय चतुर्वेदी जी और पूरी टीम निरंतर सेवा और परोपकार के कार्यो में रत है। स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि परोपकार, दया, करुणा और सेवा ये सब सार्वभौमिक मूल्य है इसके बिना संसार में भौतिक विकास तो हो सकता है परन्तु नैतिक और आध्यात्मिक विकास रूक जाता है और यही मानवता के पतन का सबसे बड़ा कारण भी है। भारतीय संस्कृति वैदिक युग से ही अत्यंत उदात्त, समन्वयवादी एवं जीवंत बनी हुई हैं और दिव्य प्रेम सेवा मिशन जैसे संस्थान उसे आज भी जीवंत बनाये हुये है।

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