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११ विवाह सहित विभिन्न संस्कार बड़ी संख्या में सम्पन्न, बहिनों ने सजाई आकर्षक रंगोली


गायत्री परिवार के अंतर्राष्ट्रीय केन्द्र शांतिकुंज में वसन्तोत्सव का मुख्य कार्यक्रम गुरुवार को हर्षोल्लास के साथ सम्पन्न हुआ। धर्मध्वजा फहराने के साथ प्रारम्भ हुए वसंत पर्व आयोजन में गायत्री परिवार प्रमुख शैल जीजी एवं देवसंस्कृति विवि के कुलाधिपति डॉ. प्रणव पण्ड्या ने विश्वभर से आये गायत्री साधकों को वासंती उल्लास की शुभकामनाएँ दीं। सरस्वती पूजन, गुरुपूजन एवं पर्व पूजन के साथ हजारों साधकों ने भावभरी पुष्पांजलि अर्पित कीं।

रिपोर्ट  - allnewsbharat.com

हरिद्वार ३० जनवरी। अखिल विश्व गायत्री परिवार के अंतर्राष्ट्रीय केन्द्र शांतिकुंज में वसन्तोत्सव का मुख्य कार्यक्रम गुरुवार को हर्षोल्लास के साथ सम्पन्न हुआ। धर्मध्वजा फहराने के साथ प्रारम्भ हुए वसंत पर्व आयोजन में गायत्री परिवार प्रमुख शैल जीजी एवं देवसंस्कृति विवि के कुलाधिपति डॉ. प्रणव पण्ड्या ने विश्वभर से आये गायत्री साधकों को वासंती उल्लास की शुभकामनाएँ दीं। सरस्वती पूजन, गुरुपूजन एवं पर्व पूजन के साथ हजारों साधकों ने भावभरी पुष्पांजलि अर्पित कीं। तीन दिवसीय वसंतोत्सव के प्रमुख कार्यक्रम को संबोधित करते हुए अखिल विश्व गायत्री परिवार प्रमुख डॉ. प्रणव पण्ड्या ने कहा कि वसंत शक्ति का अरुणोदय है। वसंत जीवन का शृंगार करता है। प्रकृति व परमेश्वर के मिलन का महापर्व है वसंत। हंसवाहिनी माता के प्रादूर्भाव का दिन है। उन्होंने कहा कि इन दिनों वासंती संस्कृति पूरे विश्व में दिखाई दे रहा है। रुस, अमेरिका सहित अनेक देशों के लोग भारतीय संस्कृति के प्रति आकर्षित हो रहे हैं। गायत्री परिवार प्रमुख ने कहा कि लोगों में जब संस्कृति आती है, तब उनमें उदारता, सेवाभाव जैसे सद्गुण विकसित होने लगते हैं। युवा उत्प्ररेक डॉ. पण्ड्या ने श्रीअरविन्द, रामकृष्ण परमहंस आदि अवतारी सत्ताओं का हवाला देते हुए कहा कि साधना से ही ये सिद्ध हुए और समाज के लिए उल्लेखनीय कार्य कर पाये। वहाँ से लेकर अब तक अनेक ऐसे उदाहरण है, जिसमें पूज्य गुरुदेव ने अपने साधनात्मक तप से समाज को नयी दिशाधारा दी है। डॉ. पण्ड्या ने गायत्री प्रिवार के आराध्यदेव पूज्य गुरुदेव के आध्यात्मिक जन्म दिवस वसंत पंचमी पर आगामी वर्ष के कार्यक्रमों की जानकारी दी। इसके तहत गृहे-गृहे यज्ञ-गायत्री उपासना, युवा सहित सभी आयु वर्ग के लोगों में सत्साहित्य का निरंतर स्वाध्याय का क्रम चलाना, व्यक्तिगत साधना के माध्यम से जीवन में पवित्रता का समावेश करना जैसे कार्यक्रमों को और अधिक गति देने की रूपरेखा समझाई। संस्था की अधिष्ठात्री शैलदीदी ने कहा कि वसंत उल्लास, उमंग का महापर्व है। वसंत पर्व के दिन ही लिपि का प्रादुर्भाव हुआ और इसी से ज्ञान का विस्तार हुआ और जनमानस में विकास दर बढ़ा है। रामायण आदि प्राचीन ग्रंथों का हवाला देते हुए शैलदीदी ने कहा कि भौतिक संपदा की तुलना में आत्मिक व आध्यात्मिक प्रगति का महत्त्व ज्यादा है। उन्होंने कबीरदास, स्वामी रामदास एवं स्वामी रामकृष्ण परमहंस की जीवनी पर प्रकाश डालते हुए कहा कि इन अवतारी सत्ताओं के कार्य को पूज्य आचार्यश्री ने इस युग में आगे बढ़ाने का कार्य किया है। उन्हीं सूत्रों पर चलते हुए गायत्री परिवार आगे बढ़ रहा है। उन्होंने कहा कि आज जहाँ मानवता संवेदनहीन हो रही है, ऐसे समय में समूह साधना के माध्मम से मनुष्य में भाव संवेदनाएँ जगाने का पावन अवसर है। इस अवसर पर डॉ. पण्ड्या व शैलदीदी ने पूज्य आचार्यश्री की पुस्तकों का अंग्रेजी व तमिल भाषाओं में अनुवादित पाँच पुस्तकों का विमोचन किया। विभिन्न संस्कार हुए - प्रातःकाल गायत्री परिवार प्रमुखद्वय ने शताधिक लोगों को गुरुदीक्षा दी, तो वहीं देश के विभिन्न राज्यों से आयेसैकड़ों की संख्या में बटुकों ने यज्ञोपवीत संस्कार कराये। पंजाब, हिमालच प्रदेश, उप्र व उत्तराखण्ड से आये ११ युवा दम्पतियों का आदर्श विवाह संस्कार सम्पन्न हुआ। नामकरण, मुण्डन, विद्यारंभ सहित कई संस्कार बड़ी संख्या में सम्पन्न हुए। समस्त संस्कार निःशुल्क सम्पन्न कराये गये। सायं दीपमहायज्ञ में पूज्य आचार्यश्री के विचारों को जन-जन तक पहुंचाने के संकल्प लिये गये। ध्वजारोहण व सांस्कृतिक कार्यक्रम- वसंतोत्सव के अवसर पर डॉ. पण्ड्या व शैलदीदी ने धर्मध्वजा फहराकर पूजन किया। गायत्री विद्यापीठ व देवसंस्कृति विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों ने सरस्वती वंदना व समूह भावनृत्य प्रस्तुत किये। २०२६ तक चलने वाली सामूहिक साधना की हुई शुरुआत-४० दिवसीय गायत्री महापुरश्चरण साधना शृंखलाबद्ध के प्रथम साधना सत्र का गायत्री परिवार प्रमुख डॉ. पण्ड्या ने साधकों को संकल्प कराने के साथ प्रारंभ किया। इस साधना में भारत सहित रुस, अमेरिका, कनाडा, दक्षिण अफ्रीका आदि देशों के साधक शामिल हो रहे हैं। यह क्रम माता भगवती देवी शर्मा की जन्म शताब्दी वर्ष २०२६ तक सतत चलता रहेगा।

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