परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने अपने संदेश में कहा कि भारत विविधता से परिपूर्ण राष्ट्र है इसलिये “विविधता में एकता” भारतीय संस्कृति की महत्त्वपूर्ण विशेषता है। भारत की विविधता पूर्ण संस्कृति हमें सामाजिक, धार्मिक, वैचारिक और सांस्कृतिक आदि अनेक स्तरों पर स्पष्ट दिखायी देती है।
रिपोर्ट - allnewsbharat.com
29 जनवरी, ऋषिकेश। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने अपने संदेश में कहा कि भारत विविधता से परिपूर्ण राष्ट्र है इसलिये “विविधता में एकता” भारतीय संस्कृति की महत्त्वपूर्ण विशेषता है। भारत की विविधता पूर्ण संस्कृति हमें सामाजिक, धार्मिक, वैचारिक और सांस्कृतिक आदि अनेक स्तरों पर स्पष्ट दिखायी देती है। हमेशा से ही भारतीय संस्कृति ने अपनी पहचान को अक्षुण्ण रखते हुये विविधता में एकता की संस्कृति को अंगीकार किया है तथा भारतीयों को भी वास्तविक स्वतंत्रता प्रदान की है। परन्तु संकीर्णवाद की संस्कृति राष्ट्र के विकास और एकता के लिये एक खतरा है और इससे आंतरिक सुरक्षा भी प्रभावित होती है इसलिये हमें यह याद रखना होगा कि ‘हम सबसे पहले भारतीय हैं’ उसके बाद हमारी व्यक्तिगत पहचान हैं। जहां बात राष्ट्र की एकता की है वहां पर हमें अपने व्यक्तिगत हितों को नजरअंदाज करते हुए देश की संप्रभुता, एकता एवं अखंडता का सम्मान करना चाहिये और यह नियम सभी पर लागू होता है। स्वामी जी ने कहा कि भारत ने महान लोकतान्त्रिक राष्ट्र के रूप में अनेक उपलब्धियों को हासिल किया है परन्तु अब इन उच्च आदर्शों को प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन में भी धारण करना होगा। भारत की एकता ही भारतीय संस्कृति का आधार स्तम्भ है और भारतीय संस्कृति प्राचीन काल से ही ‘विविधता में एकता’ कि अपनी विशिष्टताओं के साथ विकसित होती रही है। हमें एक दूसरे की संस्कृति और आस्था का सम्मान करते हुये भारतीय एकता के सूत्रों की जड़ों को और भी सुदृढ़ करना होगा यही हम सभी का परम कर्तव्य है।