हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय द्वारा "हिमालय और उप हिमालय क्षेत्रों में विकास और राजनीति : संबंधों और संभावनाओं की खोज" विषय पर आधारित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का शनिवार को समापन हो गया । संगोष्ठी के अंतिम दिन के पहले सत्र का आरम्भ चौरास परिसर स्थित स्वामी मन मंथन सभागार में किया गया ।
रिपोर्ट - अंजना भट्ट घिल्डियाल
राजनीति विज्ञान विभाग, हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय द्वारा "हिमालय और उप हिमालय क्षेत्रों में विकास और राजनीति : संबंधों और संभावनाओं की खोज" विषय पर आधारित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का शनिवार को समापन हो गया । संगोष्ठी के अंतिम दिन के पहले सत्र का आरम्भ चौरास परिसर स्थित स्वामी मन मंथन सभागार में किया गया । इस कार्यक्रम में गढवाल विश्वविद्यालय तथा अन्य विश्वविद्यालय के शिक्षकों व शोधार्थियों ने भाग लिया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि कुमाऊँ विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो डी के नौरियाल ने कहा कि हिमालय की पारिस्थिकी और इसके जीवन को बचाने के लिए विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन साधने की आवश्यकता है। मानविकी एवं समाज विज्ञान स्कूल के पूर्व संकायाध्यक्ष प्रो सी.एस. सूद ने कहा कि विकास और परिवर्तन अवश्यम्भावी हैं इसलिए विकास को क्षेत्रीय पारिस्थिकी के अनुसार नियोजित करना आवश्यक है इसके साथ ही उन्होंने इस सेमिनार के सफल आयोजन के लिए आयोजन मंडल को बधाई देते हुए विषय से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य उजागर किये। प्रो सूद ने कहा कि अब समय आ गया है कि सतत विकास पर नहीं अपितु वहन विकास अर्थात् जितना प्रकृति सहन कर सकती है उतना ही विकास किए जाने की आवश्यकता है। इस समापन कार्यक्रम के आरंभ में गढ़वाल विश्वविद्यालय श्रीनगर के प्रति कुलपति प्रो० आर सी भट्ट ने सत्र की अध्यक्षता की। और हिमालय के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने हिमालय के ऐतिहासिक महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि हिमालय भारत और मध्य एशिया के बीच एक संबंध रहा है, उन्होंने आगे इस तथ्य पर जोर दिया कि हिमालय का विकास जन केंद्रित होना चाहिए। पूरे हिमालयी क्षेत्र में क्षेत्रीय और भौगोलिक विविधता के आधार पर विभिन्न विकास मॉडल रखने की आवश्यकता है।