शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा...यही जजà¥à¤¬à¤¾ वतन के लिठहंसते-हंसते जान लà¥à¤Ÿà¤¾à¤¨à¥‡ वाले शहीद वीर राजगà¥à¤°à¥‚ का था। शहीदों की फेहरिसà¥à¤¤ में à¤à¤—तसिंह और सà¥à¤–देव का नाम तब तक अधूरा रहता है जब तक उनके साथ राजगà¥à¤°à¥‚ का नाम ना लिया जाà¤à¥¤
रिपोर्ट - डाॅ0 शिवकà¥à¤®à¤¾à¤° चैहान
शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा...यही जजà¥à¤¬à¤¾ वतन के लिठहंसते-हंसते जान लà¥à¤Ÿà¤¾à¤¨à¥‡ वाले शहीद वीर राजगà¥à¤°à¥‚ का था। शहीदों की फेहरिसà¥à¤¤ में à¤à¤—तसिंह और सà¥à¤–देव का नाम तब तक अधूरा रहता है जब तक उनके साथ राजगà¥à¤°à¥‚ का नाम ना लिया जाà¤à¥¤ à¤à¤¾à¤°à¤¤ के इस लाल का पूरा नाम शिवराम हरि राजगà¥à¤°à¥ था। महाराषà¥à¤Ÿà¥à¤° का रहने वाला यह बलिदानी à¤à¥€ à¤à¤—त सिंह और सà¥à¤–देव के साथ सà¥à¤µà¤¤à¤‚तà¥à¤°à¤¤à¤¾ आनà¥à¤¦à¥‹à¤²à¤¨ मे à¤à¤¾à¤°à¤¤ माता को मà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿ के लिठशहीद हो गया। à¤à¤—त सिंह व सà¥à¤–देव के साथ राजगà¥à¤°à¥‚ को à¤à¥€ 23 मारà¥à¤š 1931 को फांसी दी गई थी। सचà¥à¤šà¥‡ देशà¤à¤•à¥à¤¤ राजगà¥à¤°à¥‚ का जनà¥à¤® सनॠ24 अगसà¥à¤¤ 1908 में पà¥à¤£à¥‡ के पास खेड़ नामक गांव (वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ में राजगà¥à¤°à¥ नगर) में à¤à¤• बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ परिवार में हà¥à¤† था। मातà¥à¤° 6 साल की अवसà¥à¤¥à¤¾ में इनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने अपने पिता को खो दिया था। पिता के निधन के बाद राजगà¥à¤°à¥‚ वाराणसी विदà¥à¤¯à¤¾à¤§à¥à¤¯à¤¯à¤¨ करने à¤à¤µà¤‚ संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ सीखने आ गये थे। बचपन से ही राजगà¥à¤°à¥ के अंदर जंग-à¤-आजादी में शामिल होने की ललक थी। वाराणसी में विदà¥à¤¯à¤¾à¤§à¥à¤¯à¤¯à¤¨ करते हà¥à¤ राजगà¥à¤°à¥ का समà¥à¤ªà¤°à¥à¤• अनेक कà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¤¿à¤•à¤¾à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ से हà¥à¤†à¥¤ चनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¶à¥‡à¤–र आजाद से वे इतने अधिक पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µà¤¿à¤¤ हà¥à¤ कि उनकी पारà¥à¤Ÿà¥€ हिनà¥à¤¦à¥à¤¸à¥à¤¤à¤¾à¤¨ सोशलिसà¥à¤Ÿ रिपबà¥à¤²à¤¿à¤•à¤¨ आरà¥à¤®à¥€ से ततà¥à¤•à¤¾à¤² जà¥à¥œ गà¤, उस वकà¥à¤¤ उनकी उमà¥à¤° मातà¥à¤° 16 साल थी। अब इनका और उनके साथियों का मà¥à¤–à¥à¤¯ मकसद बà¥à¤°à¤¿à¤Ÿà¤¿à¤¶ अधिकारियों के मन में खौफ पैदा करना था। इसलिठवे जगह जगह घूम-घूम कर लोगों को जागरूक करते थे और जंग-à¤-आजादी के लिये जागृत करते थे। महातà¥à¤®à¤¾ गांधी के विचारों के विपरीत राजगà¥à¤°à¥ कà¥à¤°à¤¾à¤‚तिकारी तरीके से हथियारों के बल पर आजादी हासिल करना चाहते थे, उनके कई विचार महातà¥à¤®à¤¾ गांधी के विचारों से मेल नहीं खाते थे। आजाद की पारà¥à¤Ÿà¥€ में राजगà¥à¤°à¥‚ को रघà¥à¤¨à¤¾à¤¥ के छदà¥à¤®-नाम से जाना जाता था। पणà¥à¤¡à¤¿à¤¤ चनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¶à¥‡à¤–र आजाद, सरदार à¤à¤—त सिंह और यतीनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¨à¤¾à¤¥ दास आदि कà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¤¿à¤•à¤¾à¤°à¥€ इनके अà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ मितà¥à¤° थे। राजगà¥à¤°à¥ à¤à¤• अचà¥à¤›à¥‡ निशानेबाज à¤à¥€ थे। 19 दिसंबर 1928 को बà¥à¤°à¤¿à¤Ÿà¤¿à¤¶ पà¥à¤²à¤¿à¤¸ ऑफीसर जे0पी0 साणà¥à¤¡à¤°à¥à¤¸ की हतà¥à¤¯à¤¾ को राजगà¥à¤°à¥‚ ने à¤à¤—त सिंह और सà¥à¤–देव के साथ मिलकर योजनाबदà¥à¤µ किया था। असल में यह वारदात लाला लाजपत राय की मौत का बदला थी, जिनकी मौत साइमन कमीशन का विरोध करते वकà¥à¤¤ हà¥à¤ˆ थी। उसके बाद 8 अपà¥à¤°à¥ˆà¤² 1929 को दिलà¥à¤²à¥€ में सेंटà¥à¤°à¤² असेमà¥à¤¬à¤²à¥€ में हमला करने में राजगà¥à¤°à¥ का बड़ा हाथ था। राजगà¥à¤°à¥, à¤à¤—त सिंह और सà¥à¤–देव का खौफ बà¥à¤°à¤¿à¤Ÿà¤¿à¤¶ पà¥à¤°à¤¶à¤¾à¤¸à¤¨ पर इस कदर हावी हो गया था कि इन तीनों को पकड़ने के लिये पà¥à¤²à¤¿à¤¸ को विशेष अà¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤¨ चलाना पड़ा। जिसके कारण राजगà¥à¤°à¥ नागपà¥à¤° में जाकर छिप गये। वहां उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने आरà¤à¤¸à¤à¤¸ कारà¥à¤¯à¤•à¤°à¥à¤¤à¤¾ के घर पर शरण ली। वहीं पर उनकी मà¥à¤²à¤¾à¤•à¤¾à¤¤ डा. के0बी0 हेडगेवार से हà¥à¤ˆ, जिनके साथ राजगà¥à¤°à¥ ने आगे की योजना बनायी। इससे पहले कि वे आगे की योजना पर चलते, पà¥à¤£à¥‡ जाते वकà¥à¤¤ पà¥à¤²à¤¿à¤¸ ने राजगà¥à¤°à¥‚ को गिरफà¥à¤¤à¤¾à¤° कर लिया। बाद में इनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ à¤à¤—त सिंह और सà¥à¤–देव के साथ 23 मारà¥à¤š 1931 को फांसी पर लटका दिया गया। उसके बाद इन तीनों अमर बलिदानियों का अंतिम संसà¥à¤•à¤¾à¤° पंजाब के फिरोजपà¥à¤° जिले में सतलज नदी के तट पर हà¥à¤¸à¥ˆà¤¨à¤µà¤¾à¤²à¤¾ में किया गया। तीनों बलिदानियों में से आज उसी शिवराम राजगà¥à¤°à¥‚ की जंयती 24 अगसà¥à¤¤ पर सà¥à¤µà¤¤à¤‚तà¥à¤° à¤à¤¾à¤°à¤¤ का यà¥à¤µà¤¾ अपनी à¤à¤¾à¤µà¤à¥€à¤¨à¥€ शà¥à¤°à¤¦à¥à¤µà¤¾à¤œà¤‚ली अरà¥à¤ªà¤¿à¤¤ करते हà¥à¤ उनके अमर बलिदान को सादर नमन करता है।