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सहनशीलता भारतीय संस्कृति की आत्मा - स्वामी चिदानन्द सरस्वती.


अंतर्राष्ट्रीय सहिष्णुता दिवस दुनिया की संस्कृतियों की समृद्धि, विविधता और सम्मान की अभिव्यक्ति हेतु मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा इस दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य विभिन्न संस्कृतियों और लोगों के बीच सहिष्णुता का निर्माण करना है

रिपोर्ट  - allnewsbharat.com

ऋषिकेश, 16 नवंबर 2020। अंतर्राष्ट्रीय सहिष्णुता दिवस दुनिया की संस्कृतियों की समृद्धि, विविधता और सम्मान की अभिव्यक्ति हेतु मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा इस दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य विभिन्न संस्कृतियों और लोगों के बीच सहिष्णुता का निर्माण करना है तथा दूसरों के अधिकारों और स्वतंत्रता सम्मान करना। सहिष्णुता न केवल एक नैतिक कर्तव्य है, बल्कि आज के युग की सबसे प्रमुख आवश्यकता भी है। सहिष्णुता और अहिंसा की पहल करना ही वर्तमान समय की सबसे बड़ी प्राथमिकता बने। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि सहिष्णुता से तात्पर्य सहनशीलता व धैर्य से है। सहनशीलता मानव स्वभाव के अमूल्य रत्नों में से एक है। जिसके पास सहनशीलता है वह विपरीत परिस्थितियों में भी प्रसन्नता के साथ जीवन यापन कर सकता है। सहिष्णु व्यक्ति के स्वभाव में विरोध जैसा कुछ नहीं होता, वे विरोधी विचारों पर भी कोई प्रतिक्रिया नहीं देते, वे हर परिस्थिति को सहजता से स्वीकार कर लेते हैं तथा उनके स्वभाव में क्रोध व ईष्र्या नहीं बल्कि शान्ति और सहजता होती है। स्वामी ने कहा कि सहिष्णुता से युक्त स्वभाव और संस्कार ही आज के युग की सबसे बड़ी आवश्यकता है। भारत प्राचीन काल से ही बहुत सारी भाषाओं, सांस्कृतियों, धर्मों और सम्प्रदायों से युक्त राष्ट्र है और भारतीय संस्कृति का मूल मंत्र ही ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ तथा ‘सहिष्णुता’ है, जो कि भारत की माटी के कण-कण में ही मिली हुई है। हमारी संस्कृति, संस्कार और स्वभाव की गहराईयों में ही सहिष्णुता समाहित है। भारत की अपनी दिव्य संस्कृति और सभ्यता के कारण विश्व स्तर पर एक महत्वपूर्ण पहचान है। अहिंसा, सौहार्द, सहिष्णुता, भाईचारा और एकता आदि प्राचीन काल से ही भारतीय संस्कृति के मूल तत्व हैं परन्तु वर्तमान समय में समाज में आपसी वैमनस्यता बढ़ रही है जिसके कारण समाज में कई बार हिंसा का वातावरण विद्यमान हो जाता है इसलिये प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है कि समाज में अहिंसा, सौहार्द और सहिष्णुता का वातावरण बनाये रखने में सहयोग प्रदान करे। स्वामी जी ने कहा कि भारतीय संस्कृति की आत्मा में ही सहनशीलता की संस्कृति विद्यमान है। हम सभी विविधता और सहनशीलता के साथ आगे बढ़ें यही आज के समय की मांग भी है। एक-दूसरे की संस्कृति और आचार-विचार का सम्मान करें तथा ’’ओनली एक्शन - नो रिएक्शन’’ को जीवन का मंत्र बना लें। आईये आज अन्तर्राष्ट्रीय सहिष्णुता दिवस के अवसर पर संकल्प लें कि देश में एकता और शान्ति बनाये रखने में हम अपना योगदान प्रदान करेंगे। 1993 में, यूनेस्को की पहल पर, संयुक्त राष्ट्र ने 1995 को ईयर फॉर टॉलरेंस रूप में घोषित किया गया था। संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय सहिष्णुता दिवस 2020 मनाने का तात्पर्य दुनिया में व्याप्त असहिष्णुता और भेदभाव वाले वातावरण के बारे में जागरूकता पैदा करना है।

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