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"भ्र्ष्टाचार व आम जनता के शोषण का केंद्र बन चुके एचआरडीए ने अपने ही पारित प्रस्ताव का पालन नहीं कराया"मेला नियंत्रण कक्ष का लाभ तीर्थ यात्रियों को नहीं मिला"प्राधिकरण को लगा करोड़ों का चूना"


हरिद्वार विकास प्राधिकरण द्वारा कुंभमेला बजट से जिस केंद्रीय नियंत्रण कक्ष का निर्माण तीर्थ यात्रियों की आवास सुबिधा हेतु किया था उससे यात्रियों को कोई लाभ प्राप्त नहीं हुआ है जिस कारण प्राधिकरण को करोड़ो रुपये की हानि हुई आखिर इसका जिम्मेदार कौन है?

रिपोर्ट  - à¤…जय शर्मा

हरिद्वार(अजय शर्मा) हरिद्वार विकास प्राधिकरण द्वारा कुंभमेला बजट से जिस केंद्रीय नियंत्रण कक्ष का निर्माण तीर्थ यात्रियों की आवास सुबिधा हेतु किया था उससे यात्रियों को कोई लाभ प्राप्त नहीं हुआ है जिस कारण प्राधिकरण को करोड़ो रुपये की हानि हुई आखिर इसका जिम्मेदार कौन है? आपको बता दें कि प्राधिकरण बोर्ड में अर्दकुम्भ-2004 मेले से सम्बंधित बैठक दिनाँक-22-02-2002 एवं 09-03-2002 में निर्णय हुआ था कि कुम्भ/अर्दकुम्भ मेलों के आयोजन के समय रोड़ी सेक्टर में अस्थाई सी.सी.आर बनाया जाता है जिस पर अत्याधिक व्यय आता है। अतः गँगा नदी से 200 मीटर के अंतर्गत नियंत्रण के परिपेक्ष्य में एवं महायोजना में स्थायी निर्माण कुंभमेला क्षेत्र में अनुमन्य न होने के कारण शासन की अनुमति से अर्दकुम्भ मेला-2004 से पूर्व स्थायी सी.सी.आर बनाया जाना प्रस्तावित है। जिस पर रुपये 75.00 लाख का व्यय अनुमानित हैं। इसके अंतर्गत भूतल पर सिडल्ट(पार्किंग हेतु) प्रथम तल पर मीटिंग हाल, नियंत्रण कक्ष व मेलाधिकारी कार्यालय कक्ष,द्वितीय तल पर लगभग 30 कमरे जो पूर्व से तैनात सेक्टर मजिस्ट्रेटों आदि के ठहरने की व्यवस्था हेतु प्राविधान के साथ-साथ टेरेस पर मुख्य कंट्रोल रूम का प्राविधान किया जा सकता है। जिस भवन का प्रयोग मेले समाप्त होने के पश्चात हरिद्वार आने वाले तीर्थ यात्रियों को उचित किराये पर दिया जा सकेगा।तथा जिससे प्राप्त आय से इस भवन के रख-रखाब का कार्य सुचारू रूप से किया जा सकेगा। लेकिन बिडम्बना देखिए कि वर्ष-2004 के अर्दकुम्भ मेला की समाप्ति के बाद इस भवन के कमरों का प्रयोग तीर्थ श्रदालुओं की आवास सुबिधा हेतु नहीं किया गया यदि जिम्मेदार अधिकारी बोर्ड प्रस्ताव के अनुसार इस भवन में बने कमरों का प्रयोग यात्रियों की आवासीय सुबिधा हेतु करते तो प्राधिकरण कोष में प्रतिवर्ष लाखों की आय किराये के रूप में यात्रियों से प्राप्त होती इस तरह से पिछले करीब 17 बर्षों से बोर्ड प्रस्ताव का अनुपालन न कराने पर सरकार को करोड़ों की छति पहुंचाई गई है और इस भवन पर रख-रखाब के नाम पर अब तक लाखों/करोड़ों रुपये अतिरिक्त खर्च किये जा चुके हैं इस प्रकरण से स्पष्ट है कि अधिकारी अपनी मनमानी कर किस तरह से जनहित को दरकिनार कर अपने निजी हितों को महत्व देते हैं।

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