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उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय में दो दिवसीय राष्ट्रीय वैदिक संगोष्ठी का शुभारम्भ


महर्षि सान्दीपनि राष्ट्रीय वेद विद्या प्रतिष्ठान उज्जैन एवं उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय हरिद्वार के संयुक्त तत्त्वाधान में आयोजित अखिल भारतीय वैदिक संगोष्ठी में मुख्य अतिथि जनापीठाधीश्वर आचार्य महामण्डलेश्वर। आवधेशानन्द गिरि महाराज ने कहा कि वेद ज्ञान की अनन्तता बुद्धि से परे है इसलिए वेद अनन्त है।

रिपोर्ट  - allnewsbharat.com

दिनाक 29.11.2019, उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय में दो दिवसीय राष्ट्रीय वैदिक संगोष्ठी का शुभारम्भ हरिद्वार । महर्षि सान्दीपनि राष्ट्रीय वेद विद्या प्रतिष्ठान उज्जैन एवं उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय हरिद्वार के संयुक्त तत्त्वाधान में आयोजित अखिल भारतीय वैदिक संगोष्ठी में मुख्य अतिथि जनापीठाधीश्वर आचार्य महामण्डलेश्वर। आवधेशानन्द गिरि महाराज ने कहा कि वेद ज्ञान की अनन्तता बुद्धि से परे है इसलिए वेद अनन्त है। परा, अपरा, मध्यमा, ये सब भारत की प्राच्य विद्याये है, इसी को ब्रह्मसूत्र शांकर भाष्य में आचार्य शंकर ने ब्रह्म की जिज्ञासा कहा है। उन्होंने कहा कि मैं विवेकानन्द की शिष्य परम्परा का अनुयायी हूँ इसीलिए तत्त्वमसि की धारा का सम्मान करना हमारा धर्म है। वेदों ने पूरे संसार को एक दृष्टि दी है, काल की शुद्धतम् गणना वेदों के माध्यम से ही सम्भव है। उन्होंने कहा वेद यथार्थ का ज्ञान कराते हुए सत्य को उदघाटित करते हैं, वेदों के सवंर्द्धन के लिए इस प्रकार की गोष्ठियां आवश्यक हैं।वशिष्ठ अतिथि उत्तराखण्ड के पूर्व मुख्य सचिव डॉ. इन्द कमार पाण्डेय ने वेदों को सभी विद्याओं का तत्त्व बताते हुए कहा कि वेदों के संरक्षण के लिए और अधिक कार्य करने की आवश्यकता है। वेद के अध्ययन एवं अध्यापन द्वारा समाज में आयी सभी विकृतियों को दूर किया जा सकता है उन्होंने कहा लोक कल्याण के लिए वेदों में अनुसंधान । आवश्यक है। मनुष्य के ज्ञात ज्ञान का सबसे प्राचीन एवं विशालतम भण्डार है। सत्र की अध्यक्षता करते हुए उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.देवी प्रसाद त्रिपाठी ने कहा कि समस्त शास्त्रों का ज्ञान स्रोत वेद हैं शास्त्रो की परिभाषा वेदों के बिना अधूरी है। वेद मानव एवं समाज के उपकार के लिए है। चिंतन ज्ञान के अथाह सागर से चिंतन मनन एवं अनुसंधान से समाज के कल्याण के लिए उपयोग करेन की। जरूरत है। वेद का अर्थ ज्ञान है वेद का प्रचार आज के युग के लिए बहुत आवश्यक है वेद का उदेश्य अनिष्ट को दूर करना है। उन्होने कहा कि यदि मानव एव मानवजनित समाज हार्डवेयर है तो वेद मानव और समाज का सोफ्टवेयर है। उन्होने कहा कि प्रतिभागियों को इस दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्टी से सार्थक निष्कर्ष निकलकर आयेगें। इससे पूर्व संगोष्ठी के प्रारम्भ में विषय उपस्थापन महर्षिसान्दीपनिराष्ट्रिय वेद विद्या के सचिव प्रो. विरूपाक्ष वी. जडडीपाल द्वारा किया गया। गुरुकुल कागड़ी के कुलपति प्रो. रूपकिशोर शास्त्री ने कहा कि जिन विद्वानों ने आर्ष परम्परा के द्वारा सष्टि के समय से लेकर अब तक वेदों का संरक्षण किया है वह दुनिया का सबसे बड़ा आश्चर्य है. यह भारत देश की विशेषता है । कि यहां के वैदिक विद्वानों ने अपने कंठ में इसे सरक्षित किया, जिस कारण ज्ञान के मामले में हमारा देश धनी है जिसकी दहाई पूरी दुनिया देती हैं। संस्कृत भाषियों की गिरती संख्या पर उन्होने चिंता जताते हुए कहा कि वर्ष 2011 की जनगणना के आकडे भाषा की दृष्टि से उम्मीद से परे है उन्होने कहा कि जनगणना में भाषा के स्थान पर सभी अपनी मातृ भाषा संस्कृत को स्थान दे। दिल्ली संस्कृत अकादमी के पूर्व उपाध्यक्ष श्रीकृष्ण सेमवाल ने भी कार्यक्रम को संबोधन । किया। स्वागत भाषण साहित्य विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ0 हरीश चन्द्र तिवाड़ी ने तथा धन्यवाद ज्ञापन कलसचिव श्री गिरीश कुमार अवस्थी ने किया। कार्यक्रम का संचालन व्याकरण विभागाध्यक्ष डॉ शैलेश कमार तिवारी ने किया। कार्यक्रम का सयोजन डॉ.अरुण कुमार मिश्र ने किया। उदघाटन सत्र के अतिरिक्त दो सत्रों में तीन दर्जनों से अधिक शोधपत्र देश विदेश से आये विद्वानों एवं शोधार्थियों ने प्रस्तुत किये। प्रथम सत्र के संयोजक प्रो० कमलाकान्त मिश्र एवं द्वितीय सत्र की अध्यक्षता वेद प्रकाश शास्त्री ने की। इस अवसर पर विश्वविद्यालय के प्रो० मोहन चन्द्र बलादी,प्रा0 दिनेश चन्द्र चमोला.डॉ. प्रतिभा शक्ल डॉ कामाख्या कलानशासन डॉ. मनोज किशोर पन्त डॉ0 अरविन्द नारायण मित्रपत्र कल्याण अधिष्ठाता डॉ. लक्ष्मीनारायण जोशी, डॉ० रामरतन खण्डेलवाल,उपकुलसचिव श्री दिनेश कुमार, डॉ0 बिन्दुमती द्विवेदी, डॉ. प्रकाश चन्द्र पन्त डॉ0 श्वेता अवस्थी सश्री मिनाली डॉविनय सेठी,डॉ0 उमेश शुक्ल डी0 अजय कुमार, डा0 दामोदर परगाई,श्री सुशील चमोली, डा। राकेश कमार सिंह छात्र कल्याण अध्यक्ष प्रभात पंवार सूरज डोभाल बन्दन सिंह रावत, सुभाष पोखरियाल, सहित भारी संख्या में छात्र छात्राये आदि उपस्थित थे।

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