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यूक्रेन में एमबीबीएस कर रहे हजारों छात्रों की अंतिम वर्ष की परीक्षा मुश्किल में, पीएम मोदी से लगाई गुहार


यूक्रेन में चिकित्सा शिक्षा ले रहे सात हजार भारतीय छात्रों का भविष्य खतरे में आ गया है। यह सभी विद्यार्थी अलग-अलग मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस के तीसरे और अंतिम वर्ष के छात्र हैं, जिनकी परीक्षाएं भी नजदीक थीं, लेकिन उससे पहले ही रूसी सेना ने हमला कर दिया।इन छात्रों की वतन वापसी शुरू हो चुकी है।

रिपोर्ट  - allnewsbharat.com

यूक्रेन में चिकित्सा शिक्षा ले रहे सात हजार भारतीय छात्रों का भविष्य खतरे में आ गया है। यह सभी विद्यार्थी अलग-अलग मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस के तीसरे और अंतिम वर्ष के छात्र हैं, जिनकी परीक्षाएं भी नजदीक थीं, लेकिन उससे पहले ही रूसी सेना ने हमला कर दिया। इन छात्रों की वतन वापसी शुरू हो चुकी है। ऐसे में स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने छात्रों के भविष्य को लेकर सवाल उठाने शुरू कर दिए हैं। उनका कहना है कि छात्रों का भविष्य पूरी तरह से खतरे में है। आगे की पढ़ाई के बारे में अब तक कुछ भी स्पष्ट नहीं है।अगर आगामी दिनों में यूक्रेन के कॉलेज इन छात्रों को डिग्री देते भी हैं तो भी इन्हें भारत में नेशनल एग्जिट टेस्ट (नेक्सट) देना होगा, जो अगले साल से सभी के लिए अनिवार्य रहेगी। चूंकि, विदेश से पढ़कर भारत आने वाले छात्रों के लिए यहां का स्क्रीनिंग टेस्ट हमेशा से एक बड़ी चुनौती भी रहा है। ऐसे में केंद्र सरकार से इन छात्रों के भविष्य को लेकर जल्द से जल्द निर्णय लेने की मांग भी की जा रही है।प्रोग्रेसिव मेडिकोज एंड साइंटिस्ट फोरम के महासचिव डॉ. सिद्घार्थ तारा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर तत्काल फैसला लेने की मांग की है, ताकि छात्र-छात्राएं और उनके परिजनों को कुछ दिलासा मिल सके,उन्होंने बताया कि यूक्रेन में करीब 22 हजार से ज्यादा छात्र-छात्राएं हैं, जिनमें से करीब सात से आठ हजार विद्यार्थी एमबीबीएस अंतिम वर्ष से हैं। मंगलवार को खारकीव में एमबीबीएस अंतिम वर्ष के छात्र नवीन कुमार की हमले में मौत हुई है।डॉ. तारा का कहना है कि जिन छात्रों ने बैंक लोन लेकर वहां प्रवेश लिया है उनके लिए यह सबसे ज्यादा घातक स्थिति है। क्योंकि, बच्चों की पढ़ाई खत्म होने से पहले ही उन्हें वापस बुलाना पड़ रहा है। आगे क्या होगा? यह किसी को नहीं पता, लेकिन भारत सरकार को तत्काल इनके बारे में विचार करना चाहिए। डॉ. तारा का कहना है कि भारत के सरकारी मेडिकल कॉलेजों में जब किसी छात्र-छात्रा को प्रवेश नहीं मिल पाता है तो वह विदेश का विकल्प चुनता है। यह इसलिए भी कि भारत के प्राइवेट मेडिकल कॉलेज की तुलना में बाहर से एमबीबीएस करना कम खर्चीला है। अब ये छात्र वापस आ रहे हैं, ऐसे में भारत सरकार को यह भी बताना चाहिए कि अगर इनको हम अपने देश में एक मौका देंगे तो क्या उन्हें सरकारी संस्थान मिलेगा? क्योंकि, प्राइवेट कॉलेज में इन्हें एडमिशन मिलता भी है, तब भी हर किसी के परिजन खर्चा वहन नहीं कर पाएंगे।

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