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चातुर्मास के पावन अवसर पर ‘प्लास्टिक प्रदूषण’ को पूरी तरह से समाप्त करने का संकल्प - स्वामी चिदानन्द सरस्वती


परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने आज चातुर्मास के आरम्भ अवसर पर परमार्थ निकेतन प्रांगण में विशेष हवन कर विश्व शान्ति की प्रार्थना की। हिंदू धर्म में एकादशी तिथि और व्रत का विशेष आध्यात्मिक महत्व है।

रिपोर्ट  - allnewsbharat.com

10 जुलाई, ऋषिकेश। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने आज चातुर्मास के आरम्भ अवसर पर परमार्थ निकेतन प्रांगण में विशेष हवन कर विश्व शान्ति की प्रार्थना की। हिंदू धर्म में एकादशी तिथि और व्रत का विशेष आध्यात्मिक महत्व है। वर्ष में चैबीस एकादशियाँ होती हैं और जब अधिकमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती हंै। आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी कहा जाता है क्योंकि इस दिन भगवान सूर्य, मिथुन राशि में प्रवेश करते हैं, इसी दिन से चातुर्मास का आरंभ होता है। सनातन संस्कृति के अनुसार आज से भगवान श्री हरि विष्णु क्षीरसागर में शयन करते हैं और फिर लगभग चार माह बाद जब भगवान सूर्य, तुला राशि में प्रवेश करते हैं उस तिथि को देवोत्थानी एकादशी कहा जाता है। देवशयनी और देवोत्थानी एकादशी के इस बीच के अंतराल को चातुर्मास कहा जाता है। शास्त्रों में उल्लेख किया गया है कि जब भगवान विष्णु वामन अवतार में आए और दैत्यराज राजा बलि से तीन पग भूमि दान में मांगी तब उन्होंने पहले पग में संपूर्ण पृथ्वी, आकाश और सभी दिशाओं को ढक लिया था। दूसरे पग में उन्होंने स्वर्ग लोक को ले लिया था और तीसरे पग में राजा बलि ने उन्हें अपने सिर पर पैर रखने के लिए कहा, राजा बलि की इस बात से वामन रूप भगवान विष्णु अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्होंने बलि को पाताल लोक का राजा बना दिया, तब राजा बलि ने भगवान विष्णु से कहा कि प्रभु आप हमारे साथ ही निवास करें। राजा बलि की भक्ति को देखते हुए चार माह भगवान विष्णु ने पाताल लोक में निवास किया। यह चार माह देवशयनी एकादशी से प्रारंभ होकर देवउठनी एकादशी तक चलते हैं तथा यह सनातन धर्म परम्परा के लिये अत्यंत महत्वपूर्ण है। स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि हमारे शास्त्रों में नदियों, सागर, प्रकृति, और पेड़-पौधों के संरक्षण और संवर्द्धन की महिमा का उल्लेख किया गया हंै। वर्तमान समय में हमारी नदियां प्रदूषित हो रही हैं, समुद्र की लहरों के साथ प्लास्टिक के ढ़ेर तटोें पर एकत्र हो रहे हैं, जिससे जलीय जीवन अत्यधिक प्रभावित हो रहा है। स्वामी जी ने कहा कि प्रत्येक वर्ष 300 मिलियन टन से अधिक प्लास्टिक का उत्पादन किया जाता है जिसमें से आधे का उपयोग शॉपिंग बैग, कप और स्ट्रॉ जैसी एकल-उपयोग वाली वस्तुओं को डिजाइन करने के लिये किया जाता है। केवल 9 प्रतिशत प्लास्टिक कचरे का पुनर्चक्रण किया जाता है। लगभग 12 प्रतिशत को जला दिया जाता है जबकि 79 प्रतिशत लैंडफिल में जमा हो जाता है।

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