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महाकुंभ: 2021 में करोड़ों के घोटाले का खेल, बड़ा सवाल:भ्रष्टाचारियों को किसका संरक्षण?


देवभूमि उत्तराखंड के मुखिया पुष्कर सिंह धामी प्रदेश को भ्रष्टाचार मुक्त करने का दावा करते हैं लेकिन यहां हकीकत कुछ और ही बयान करती है यहां बड़े-बड़े महारथी करोड़ों के घोटाले करने के बाद भी पुरस्कार पा रहे हैं .

रिपोर्ट  - अजय शर्मा

देवभूमि उत्तराखंड के मुखिया पुष्कर सिंह धामी प्रदेश को भ्रष्टाचार मुक्त करने का दावा करते हैं लेकिन यहां हकीकत कुछ और ही बयान करती है यहां बड़े-बड़े महारथी करोड़ों के घोटाले करने के बाद भी पुरस्कार पा रहे हैं . आखिर सवाल ये उठता है कि भ्रष्टाचारियों को किस का संरक्षण प्राप्त है और गंभीर प्रकरणों की जांच कौन करेगा? "आपको बता दें कि हरिद्वार महाकुंभ 2021 के दौरान हुए महा घोटाले की गोपनीय शिकायत प्रदेश के मुख्यमंत्री से 01/09/ 2022 को की गई थी आरोप है कि मेला अधिष्ठान में तैनात प्रधान सहायक राहुल कश्यप और उसके सहयोगी संविदा कर्मियों ने कुंभ मेला के कार्यों के टेंडर की शर्तों में अपने तरीके से फेरबदल कर ठेकेदारों से सांठगांठ करके सरकार को करोड़ों का चूना लगाया है इतना ही नहीं आरोप यह भी है कि आरोपियों ने पूर्व मेला अधिकारी "दीपक रावत के फर्जी हस्ताक्षर"कर करोड़ों के कार्यों का भुगतान भी करवा दिया" इतना ही नहीं आरोप यह भी है की आरोपियों ने करोड़ों की नामी बेनामी चल अचल संपत्तियां अर्जित की हैं. उल्लेखनीय है कि इस संबंध में मुख्यमंत्री से की गई शिकायत के बाद 16 सितंबर 2022 को हरिद्वार के जिलाधिकारी/मेला अधिकारी विनय शंकर पांडे ने आरोपी राहुल कश्यप (प्रधान सहायक) को कुंभ मेला अधिष्ठान में आवश्यकता ना होने के कारण उन्हें तत्काल प्रभाव से कार्यमुक्त कर दिया गया था. लेकिन राहुल कश्यप ने इस आदेश को कोई तवज्जो नहीं दी और राहुल शासन/प्रशासन में बैठे अपने आकाओं की चौखट पर पहुंचा इसके बाद मजबूरन दिनांक 14 अक्टूबर 2022 को 16 सितंबर 2022 के आदेश को निरस्त करते हुए मेला अधिकारी/जिलाधिकारी ने राहुल कश्यप को पुनः मेला अधिष्ठान में पूर्व की भांति नियुक्त कर दिया। यहां यह उल्लेखनीय है कि कुंभ मेला 2021 समाप्त हो चुका है और राहुल कश्यप और उनके सहयोगियों पर गंभीर आरोप हैं इसके बाद भी आरोपी कुंभ मेला अधिष्ठान में कुंडली मारकर बैठे हैं। "" कहां है मुख्यमंत्री को प्रेषित शिकायती पत्र? आपको बता दें कि शिकायती पत्र प्रदेश के मुखिया को दिया गया था तथा संबंधित कार्यालय ने इस पत्र को जिलाधिकारी हरिद्वार को आवश्यक कार्यवाही हेतु प्रेषित किया और जिला अधिकारी कार्यालय ने इस गंभीर प्रकरण को मेला अधिष्ठान को भेज दिया. और अब मेला अधिष्ठान का कहना है कि उक्त पत्र अभिलेख अनुसार उन्हें प्राप्त नहीं हुआ है वहीं जिलाधिकारी कार्यालय की माने तो उन्होंने शिकायती पत्र मेला अधिष्ठान को भेजा है? इसमें कौन सच्चा और कौन झूठा है यह समय ही बताएगा लेकिन विडंबना देखिए की हमारे राज्य में गंभीर प्रकरणों की जांच कैसे होती है क्या ऐसे ही भ्रष्टाचार मुक्त होगा उत्तराखंड?

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