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शिवभक्तों को कांवड यात्रा की स्मृति में पौधों के रोपण हेतु किया जा रहा प्रेरित


राजाजी नेशनल पार्क नीलकंठ मार्ग पर शुद्ध पेयजल की व्यवस्था, निःशुल्क चिकित्सा सुविधायें, पौधा रोपण व फलदार पौधों का वितरण, सिंगल यूज प्लास्टिक का उपयोग न करने हेतु संकल्प, कपड़े के झोले का वितरण और अनेक सुविधायें प्रदान की जाती हैं ताकि सभी के लिये कावंड यात्रा सहज, सुलभ व यादगार हो सके।

रिपोर्ट  - आल न्यूज़ भारत

ऋषिकेश, 31 जुलाई। परमार्थ निकेतन द्वारा प्रतिवर्ष कावंड़ियों और शिवभक्तों के लिये राजाजी नेशनल पार्क नीलकंठ मार्ग पर शुद्ध पेयजल की व्यवस्था, निःशुल्क चिकित्सा सुविधायें, पौधा रोपण व फलदार पौधों का वितरण, सिंगल यूज प्लास्टिक का उपयोग न करने हेतु संकल्प, कपड़े के झोले का वितरण और अनेक सुविधायें प्रदान की जाती हैं ताकि सभी के लिये कावंड यात्रा सहज, सुलभ व यादगार हो सके। अभी तक 20 हजार से अधिक कावड़ियों ने चिकित्सा सुविधाओं का लाभ लिया है और ये सेवायें निरंतर जारी है। शिवभक्त कांवड यात्रा में अपने गावांे से पैदल चलकर आते हैं, कष्ट सहन करते हुये यात्रा करते हैं। कष्ट सहन करना एक तरह की तपस्या है और वह तपस्या जीवन का एक हिस्सा बनती है। जब हम यात्रा से वापस लौटते है तो वह धैर्य, धीरता, गंभीरता, सहिष्णुता और सहनशीलता हमारे जीवन का अंग बन जाती है। यही कांवड़ यात्रा का वास्तविक स्वरूप भी यही है। स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने अपने संदेश में कहा कि कांवड़ यात्रा स्व से शिवत्व की यात्रा हैं। यह सत्यम, शिवम और सुन्दरम की यात्रा है। कांवड़ यात्रा संकल्प व तपस्या की यात्रा है; यह यात्रा सात्विक हो इसलिये यह यात्रा भगवान के नाम का जप करते हुये पूर्ण करें। ’लेस चैटिंग मोर चैंटिंग’ गप करते हुये नहीं बल्कि जप करते हुये यात्रा करे। स्वामी जी ने कहा कि अब समय आ गया कि ’बोल बम बोल बम कचरा कर दो जड़ से खत्म’ के संकल्प के साथ कांवड यात्रा पूर्ण करें क्योकि कांवड यात्रा कचरा यात्रा नहीं है। स्वामी जी ने कहा कि हमारा राष्ट्र पर्वो व त्यौहारों का राष्ट्र है। भारत की विविधता में एकता ही उसकी विशेषता है। यहां पर विभिन्न धर्मों, संस्कृतियों, भाषाओं और रंगों की विविधता होने के बाद भी सभी मिलकर त्यौहार मनाते है। भारत तीर्थों की भूमि है; पर्वों की भूमि है और पर्व हमें एक - दूसरे से जोड़ने और जुड़ने का संदेश देते हैं। भारतीय परम्परा और हिंदू धर्म के तीज-त्यौहारों का अपना विशेष महत्व है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार सोमवार भगवान भोलेनाथ को समर्पित दिन है। सावन माह में प्रकृति का सौंदर्य, पुनर्जन्म, आध्यात्मिक ऊर्जा के संचार और आत्मिक शक्ति के विस्तार का दिव्य समय है। प्रकृति का पुनर्जन्म और नवांकुर इसी माह से आरम्भ होता है। बाहर के वातावरण में हरियाली संर्वद्धन और आन्तरिक वातावरण में चैतन्य का जागरण होता है। साधक, उपवास, साधना और भक्ति के माध्यम से अपने अन्दर आध्यात्मिक दिव्य शक्तियों का जागरण करते हैं।

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