अंतर्राष्ट्रीय मानव एकजुटता दिवस के अवसर पर परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि आज जब विश्व में विभिन्न प्रकार के संघर्ष, आतंकवाद और असहमति फैल रही हैं ऐसे में मानवता को एकजुट करने के लिए एक ठोस प्रयास की आवश्यकता है|
रिपोर्ट - allnewsbharat.com
ऋषिकेश, 20 दिसम्बर। अंतर्राष्ट्रीय मानव एकजुटता दिवस के अवसर पर परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि आज जब विश्व में विभिन्न प्रकार के संघर्ष, आतंकवाद और असहमति फैल रही हैं ऐसे में मानवता को एकजुट करने के लिए एक ठोस प्रयास की आवश्यकता है ताकि दुनियाभर में मानवता, समानता, और भाईचारे का संदेश प्रसारित हो सके। यह दिन हमें याद दिलाता है कि हम सभी मानव हैं, और हमारा सबसे बड़ा उद्देश्य एक-दूसरे के साथ प्रेम और एकता से जीना है। स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि महाकुम्भ मेला एकजुटता का प्रतीक है। महाकुम्भ मेला सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह पूरी दुनिया के लिए मानव एकजुटता का सबसे बड़ा महोत्सव है। इस मेले में करोड़ों श्रद्धालु एकजुट होकर सामाजिक, धार्मिक, और सांस्कृतिक सौहार्द्र का प्रतीक बनते हैं। यह मेला सिर्फ धार्मिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक समरसता का भी प्रतीक है। प्रत्येक 12 वर्ष में होने वाला महाकुम्भ का यह आयोजन मानवता की एकजुटता का सबसे बड़ा प्रतीक है, जहाँ पर लाखों लोग विभिन्न धर्म, जाति, और संप्रदाय से होकर भी एक ही लक्ष्य के साथ इकठ्ठा होते हैं। यह मेला एक वैश्विक मंच है जहाँ पर हर व्यक्ति अपने व्यक्तिगत, सामाजिक और धार्मिक भेदभाव को भूलकर एक ही उद्देश्य की ओर बढ़ते हैं वह है परमात्मा की कृपा प्राप्त करना और समाज में शांति और सद्भावना स्थापित करना। महाकुम्भ मेला एक ऐसा स्थान है जहाँ हर धर्म और संस्कृति के लोग एक साथ मिलकर साझा अनुभव करते हैं। यहाँ पर भारत के विभिन्न हिस्सों से लोग अपने पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ आते हैं, परंतु उनका उद्देश्य एक ही होता है - एकता, शांति और सद्भाव की स्थापना। महाकुम्भ मेला यह दर्शाता है कि धर्म और संस्कृति की कोई सीमाएँ नहीं होतीं, बल्कि सबका उद्देश्य एक ही होता है - मानवता की सेवा करना। हमारी प्राचीन भारतीय संस्कृति में वेदों का अत्यधिक महत्व है। वेदों मेें मानवता, एकजुटता और भाईचारे के अनेक मंत्र दिए गए हैं। वेदों के अनुसार, समाज में एकता का होना अत्यंत आवश्यक है, क्योंकि एकजुटता से ही समाज में शांति, समृद्धि और सुख-शांति का वास होता है। ऋग्वेद में एकता का संदेश बड़े ही सुन्दर ढंग से दिया गया है -संगच्छध्वं संवदध्वं सं वो मनांसि जानताम् अर्थात, आपस में मिलजुलकर चलें, आपस में संवाद करें औस् एक-दूसरे के साथ जुडें रहे यह श्लोक हमें यह सिखाता है कि समाज में एकता और समरसता के लिए हमें मिलकर काम करना होगा, ताकि हम एक उद्देश्य की ओर बढ़ सकें। जब हम एक दूसरे के साथ मिलकर रहते हैं, तो हम अपने भीतर की एकता को महसूस करते हैं और यह दुनिया में शांति की स्थापना के लिये जरूरी है।