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संस्कृत भाषा के प्रति अपमानजनक भाषण का विरोध


डीएमके नेता द्वारा भारतीय संसद में संस्कृत भाषा को लेकर दिया गया अपमानजनक भाषण का विरोध सम्पूर्ण भारतवर्ष कर रहा है। संस्कृत एवं संस्कृति के प्रति जागरूक गुरुकुल काँगड़ी समविश्वविद्यालय के संस्कृत विभागाध्यक्ष प्रो० ब्रह्मदेव विद्यालंकार ने कहा है

रिपोर्ट  - allnewsbharat.com

दयानिधि मारन, डीएमके नेता द्वारा भारतीय संसद में संस्कृत भाषा को लेकर दिया गया अपमानजनक भाषण का विरोध सम्पूर्ण भारतवर्ष कर रहा है। संस्कृत एवं संस्कृति के प्रति जागरूक गुरुकुल काँगड़ी समविश्वविद्यालय के संस्कृत विभागाध्यक्ष प्रो० ब्रह्मदेव विद्यालंकार ने कहा है कि, संस्कृत से ही मूल भारत की पहचान है। भारतीय परम्परा के मूल विद्याओं का स्रोत वेद भी संस्कृत भाषा में ही हैं। न केवल धार्मिक अपितु समस्त लोक व्यवहार, नीति, न्याय, विज्ञान, गणित, भूगोल, संगीत, नाट्य, वास्तु, चिकित्सा, दर्शन, अस्त्र-शस्त्रादि समस्त विद्याएं इसी भाषा में सुरक्षित हैं। शायद सांसद दयानिधि की अज्ञानता ने उन्हें यह भुला दिया कि दयानिधि नाम भी संस्कृत नाम है। संस्कृत भाषा की महत्ता को समझते हुए “सर चार्लस् विल्किन्, सर विलियम जॉन्स, थॉमस् स्टीफैन्स, ग्रासमान, रॉबर्ट ओपनहैमर, ब्लूमफील्ड, डेनीयल हेनरीच्, नोम चॉस्की” इत्यादि वैदेशिक विद्वानों ने भी संस्कृत सम्बन्धी ग्रन्थों पर कार्य किया और संस्कृत भाषा की भूरिशः प्रशंसा भी की है। आधुनिक समय में भी अमेरिका के पैंसिलवेनिया विश्वविद्यालय में कार्यरत प्रो0 जॉर्ज कार्डोना का नाम संस्कृत-जगत् में अत्यधिक श्रद्धाभाव से लिया जाता है। संस्कृत किस राज्य की आधिकारिक भाषा है? दयानिधि के इस बेबुनियाद प्रश्न का जबाब देते हुए विभागाध्यक्ष ने कहा कि, शायद दयानिधि को यह ज्ञात नहीं की संस्कृत भाषा उत्तराखण्ड एवं हिमाचल प्रदेश की द्वितीय आधिकारक भाषा है। केवल भारत के ही नहीं अपितु समस्त विश्व के विश्वविद्यालयों में इसको लेकर अध्ययन-अध्यापन एवं शोधकार्य हो रहे हैं। न केवल गुरुकुलों के छात्र अपितु अन्य संस्कृत विश्वविद्यालयों के छात्र संस्कृत भाषा को बोलने में रुचि रखते हैं एवं संस्कृत में साहित्य संरचनाएं भी हो रहीं हैं। क्योंकि, संस्कृत भाषा भारतीय प्रतिष्ठा से जुड़ी हुई है, अतः संस्कृत के विरोधी नेता दयानिधि मारन वास्तव में भारतीय प्रतिष्ठा के संहारक ही हैं, अतः उन्हें सम्पूर्ण भारतवर्ष के समक्ष संसद में क्षमा याचना करनी चाहिए। संस्कृत विभाग के समस्त शिक्षकों और छात्रों ने इनके वक्तव्य की कड़ी भर्त्सना की है। संस्कृत भाषा के महत्त्व को न जानते हुए केवल रजनीतिक मतभेद के कारण संस्कृत के प्रति इस प्रकार का वक्तव्य रखना सर्वथा अनुचित है।

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