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श्री विष्णु चैतन्य वृध्दाश्रम के पावन प्रांगण में आयोजित पावन प्रज्ञा पुराण की कथा


श्री विष्णु चैतन्य वृध्दाश्रम के पावन प्रांगण में आयोजित पावन प्रज्ञा पुराण की कथा पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी के वरिष्ठ प्रतिनिधि कथा वाचक अशोक कुमार गर्ग युग प्रहरी ने संगीत मय पावन प्रज्ञा पुराण कथा का वाचन करते हुए कहा कि महर्षि धौम्य का आश्रम गंगा तट पर था।

रिपोर्ट  - à¤†à¤² न्यूज़ भारत

आज दिनांक १९/११/२१ दिन शुक्रवार को श्री विष्णु चैतन्य वृध्दाश्रम के पावन प्रांगण में आयोजित पावन प्रज्ञा पुराण की कथा पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी के वरिष्ठ प्रतिनिधि कथा वाचक अशोक कुमार गर्ग युग प्रहरी ने संगीत मय पावन प्रज्ञा पुराण कथा का वाचन करते हुए कहा कि महर्षि धौम्य का आश्रम गंगा तट पर था।कार्तिक पूर्णिमा के पुण्य अवसर परभारत के कौने -कौने से गृहस्थ परिवार महर्षि धौम्य के सत्संग मंडप में पधारे।व्यास पीठ पर विराजमान महर्षि धौम्य ने गृहस्थजनों की पारिवारिक, सामाजिक समस्या आधुनिक काल की समस्या प्राचीन काल की समस्यायों से अलग है।शिक्षा प्रणाली में विकार आ गये हैं।सारा देश विसंगतियों में फंसा हुआ है। परिवारों में कलह हों रहें हैं,व्यक्ति का आचरण भ्रष्ट हो रहा है। तो ऐसे समय में आध्यात्मिक चिंतन तथा कर्तव्यों का बोध कराना आवश्यक है। क्योंकि कोई भी व्यक्ति संत,समाज सुधारक, इंजीनियर, डाक्टर, कलेक्टर,मास्टर बाद में है, पहले वह किसी परिवार का सदस्य है। सुनकर सबकी आतुर वाणी,बोले ऋर्षिवर मुस्करा करके। है भद्र जनों!चिन्ता छोड़ो,तुम सुन लो ध्यान लगा करके।। चारों आश्रम में सर्वश्रेष्ठ,यह गृहस्थाश्रम कहलाता है। यदि है परिवार सुसंस्कृत तो, परिवार स्वर्ग बन जाता है।। वेद शास्त्र उपनिषद सभी इसकी महिमा को गाते हैं।है धन्य गृहस्थ आश्रम कहकर ,इसे देव ऋर्षि अपनाते हैं। यही गृहस्थ जीवन का , है पुनीत अनुष्ठान। यह परिवार परंपरा, है रत्नों की खान।। धौम्य ऋर्षि समझा रहे हैं कि गृहस्थाश्रम जीवन का पवित्र अनुष्ठान है। गृहस्थ एक तपोवन है , जिसमें संयम , सेवा ओर सहिष्णुता की साधना करनी चाहिए। आत्मीयता का विस्तार होता है।स्वार्थ पर अंकुश लगता है आत्म संयम, परोपकार,त्याग की भावना का उदय होता है। माता - पिता,पति--पत्नि तथा संतान के प्रति जो श्रध्दा, समर्पण,स्नेह होता है। यही भावना विकसित होकर मनुष्य को महामानव बना देती है। धन्यो गृहस्थाश्रम'' कहकर महाप्राज्ञ कहते हैं कि समाज को सुनागरिक देने की खान ही परिवार। भक्त, ज्ञान, पंडित,विव्दान संत,समाज सुधारक जितने भी महापुरुष हुए हैं वे सब परिवार की फुलवारी के सुगंधित पुष्प हैं। जिससे सारा विश्व महकता है। परिवार एक लघु राष्ट्र है।

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