परमार्थ निकेतन, ऋषिकेश में आयोजित निःशुल्क दिव्यांगता मुक्त शिविर का समापन के अवसर पर दिव्यांगों को कृत्रिम व सहायक अंग वितरित करने के साथ ही परमार्थ निकेतन गंगा तट पर गंगा आरती के दौरान उन्हें रूद्राक्ष का माला पहनाकर उनका अभिनन्दन किया। वास्तव में यह अत्यंत प्रेरणादायक है।
रिपोर्ट - allnewsbharat.com
ऋषिकेश, 20 सितम्बर। परमार्थ निकेतन, ऋषिकेश में आयोजित निःशुल्क दिव्यांगता मुक्त शिविर का समापन के अवसर पर दिव्यांगों को कृत्रिम व सहायक अंग वितरित करने के साथ ही परमार्थ निकेतन गंगा तट पर गंगा आरती के दौरान उन्हें रूद्राक्ष का माला पहनाकर उनका अभिनन्दन किया। वास्तव में यह अत्यंत प्रेरणादायक है। दिव्यांगों जनों को परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज ने स्वयं रूद्राक्ष की माला सभी दिव्यांगों को पहनाकर उनका अभिनन्दन किया। महामंडलेश्वर स्वामी असंगानन्द सरस्वती जी और स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी का मार्गदर्शन और आशीर्वाद पाकर सभी दिव्यांग जन गद्गद हुये। दिव्यांग जनों ने कहा कि अक्सर लोग हमें समाज के अन्य लोगों से अलग दृष्टि से देखते हैं परन्तु आज परमार्थ निकेतन गंगा तट पर इतना सम्मान प्राप्त हुआ उसे हम शब्दों में व्यक्त नही ंकर सकते। हमें आरती घाट पर सम्मानजनक रूप से स्थान दिया, पूज्य स्वामी जी ने स्वयं हमें माला पहनाई, जब तक हमारा अंग बने तब तक हमारे रहने व भोजन की व्यवस्था की। वास्तव में यही समाज सेवा और मानवता की सेवा हैं। हमें बताया कि इस शिविर का मुख्य उद्देश्य दिव्यांगजनों को आत्मनिर्भर बनाना और उन्हें समाज की मुख्यधारा में लाना भी है। शिविर के दौरान सैकड़ों दिव्यांगजनों को कृत्रिम अंग और अन्य सहायक उपकरण वितरित किए गए। विशेषज्ञों ने दिव्यांगजनों की जांच की और उन्हें आवश्यक चिकित्सा सहायता प्रदान की। इस शिविर ने न केवल दिव्यांगजनों को न केवल शारीरिक सहायता प्रदान की, बल्कि उन्हें मानसिक और भावनात्मक समर्थन भी दिया। स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि हमारा उद्देश्य दिव्यांगजनों को आत्मनिर्भर बनाना और उन्हें समाज की मुख्यधारा में शामिल करना है। उन्होंने बताया कि हमारे पास महावीर सेवा सदन, कोलकाता से जो टेक्निशियन आयें हैं उनमें से अधिकांश दिव्यांग है। उन्हें पहले कृत्रिम अंग प्रदान किये, फिर उन्हें हौसला दिया और आज वे सब दूसरों के कृत्रिम अंग बना रहे है। यह अपने आप में एक मिसाल है और यही सच्ची सेवा भी है तथा दूसरों के लिये प्रेरण भी है कि अपने दर्द से उबरकर कैसे समाज सेवा के प्रति और अधिक समर्पित हो सकते हैं।