विद्यार्थी विद्या अध्ययन के साथ-साथ संसार के विकारी भावों को त्यागकर श्रेष्ठ मार्ग की ओर प्रवृत्त होता हैै: आचार्य बालकृष्ण


पतंजलि भारतीय आयुर्विज्ञान एवं शोध संस्थान (पतंजलि आयुर्वेद कॉलेज) के सत्र 2024-25 के लिए चयनित भावी चिकित्सकों का शिक्षारम्भ व उपनयन संस्कार पतंजलि योगपीठ स्थित आयुर्वेद भवन के सभागार में सम्पन्न हुआ। कार्यक्रम की शुरूआत यज्ञ व मंगलाचरण से हुई।

रिपोर्ट  - allnewsbharat.com

हरिद्वार, 22 नवंबर। पतंजलि भारतीय आयुर्विज्ञान एवं शोध संस्थान (पतंजलि आयुर्वेद कॉलेज) के सत्र 2024-25 के लिए चयनित भावी चिकित्सकों का शिक्षारम्भ व उपनयन संस्कार पतंजलि योगपीठ स्थित आयुर्वेद भवन के सभागार में सम्पन्न हुआ। कार्यक्रम की शुरूआत यज्ञ व मंगलाचरण से हुई। इस अवसर पर पतंजलि योगपीठ के संस्थापक अध्यक्ष स्वामी रामदेव जी ने नवप्रवेशित छात्र-छात्राओं को सम्बोधित करते हुए कहा कि आप अपने शरीर, इन्द्रियों, मन, मस्तिष्क व अपनी सोच को ऐसे ट्रेण्ड करो कि अपने भीतर एक विराट व्यक्तित्व को जीओ। अनुभव करो कि मैं महर्षि चरक, पाणीनी व धन्वंतरी का प्रतिनिधि हूँ। आपको उपचार के नाम पर अत्याचार करने वाला डॉक्टर नहीं बनना है। व्यापार करना हमारा ध्येय नहीं है, उपचार एवं उपकार करेंगे तो आपका उद्धार स्वतः ही हो जायेगा। आपको कर्म के अनुसार शीलवान बनना है, आपका आचार-विचार, वाणी और स्वभाव संयममय होना चाहिए। आपको अखण्ड-प्रचण्ड पुरुषार्थ करते हुए सफलता के सोपान चढ़कर नव इतिहास गढ़ने हैं। उपनयन संस्कार के दौरान उन्होंने कहा कि आप सभी को यज्ञोपवीत परम्परा को आत्मसात करके उसमें जीना का संकल्प लेना है और जीवन में हमेशा कटिबद्ध व प्रतिबद्ध रहना है। स्वामी जी ने कहा कि पतंजलि आयुर्वेद कॉलेज उत्तराखण्ड ही नहीं देश के श्रेष्ठ कॉलेज में से एक है। हमारी ग्रेडिंग भी ‘ए’ ही आयी है। इसके लिए पूज्य आचार्यश्री जी, प्राचार्य अनिल जी, हमारे सभी गुरुजनों व विद्यार्थियों का अभिनन्दन। पतंजलि योगपीठ के महामंत्री आचार्य बालकृष्ण जी ने कहा कि विद्या अध्ययन के समय विद्यार्थी ब्रह्मचारी या ब्रह्मचारिणी के रूप में विद्या अध्ययन के साथ-साथ संसार के विकारी भावों को त्यागकर श्रेष्ठ मार्ग की ओर प्रवृत्त होने के लिए आचार्य के सम्मुख संकल्पबद्ध होता है। आपका लक्ष्य विद्या अध्ययन कर आयुर्वेद का विशेषज्ञ बनना है। आप सभी को एक व नेक मार्ग में साथ चलना है। यही हमारी संस्कृति व परम्परा है। उस संस्कृति और परम्परा से समाज तो मजबूत होता ही है, साथ ही हम भी मजबूत होते हैं। और जब व्यक्तियों का समूह सशक्त होता है तो प्रत्येक व्यक्ति संस्कारित होता है। वह शिक्षा और दीक्षा से परिपूर्ण होता है, सतकर्मों की ओर प्रवृत्त होता है।

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