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हरिद्वार में गुजरात समुदाय के लोगो का गरबा का आयोजन


शारदीय नवरात्रि का पर्व चल रहा है और घर घर मां दुर्गा की पूजा अर्चना की जाती है। हरिद्वार में गुजरात समुदाय के लोग भी गरबा का आयोजन कर रहे हैं। बताया जाता है कि इस समुदाय के लोग पिछले 19 वर्षो से गरबा का आयोजन कर रहे हैं। आइए जानते हैं गरबा का महत्व और जरूरी जानकारी।

रिपोर्ट  - 

शारदीय नवरात्रि का पर्व चल रहा है और घर घर मां दुर्गा की पूजा अर्चना की जाती है। हरिद्वार में गुजरात समुदाय के लोग भी गरबा का आयोजन कर रहे हैं। बताया जाता है कि इस समुदाय के लोग पिछले 19 वर्षो से गरबा का आयोजन कर रहे हैं। आइए जानते हैं गरबा का महत्व और जरूरी जानकारी। हरिद्वार /०७ ओक्टोबर ;नवरात्र पूरे देश में बड़े धूमधाम से मनाई जा रही है लेकिन गुजरात में नवरात्रि के गरबा की एक अलग ही धूम देखने को मिलती है। यह धूम इन दिनों गुजरात से करीब 1200 किमी दूर धर्मनगरी हरिद्वार के मायापुर नेशनल हाइवे सिथत श्याम सुंदर भवन के हॉल में भी देखने को मिल रही है। नवरात्रि में गरबा की धूम मची हुई है। हरिद्वार में इन दिनों पांच स्थानों पर गरबा का आयोजन किया जा रहा है, जिसमे मुख्य आयोजन श्याम सुंदर भवन में संपन्न हो रहा है। इसके अलावा शिवालिक नगर में शिव मंदिर ,गुजराती धर्मशाला हरिद्वार, कच्छी आश्रम इन के अलावा हरिपुर स्थित उमिया धाम में शेरी गरबा में का आयोजन हो रहे है। हरिद्वार में गुजराती संस्कृति धर्मनगरी हरिद्वार जो कि माता शक्ति की पहली शक्तिपीठ वाली नगरी है, यहां इन दिनों माता की अद्भुत भक्ति देखने को मिल रही है। गुजरात के पारंपरिक परिधानों में गरबा गुजराती नर-नारी आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। हरिद्वार के ये गुजराती परिवार पिछले 19 वर्षों से प्रतिवर्ष नवरात्रि के दौरान विशेष गरबा व डांडिया का आयोजन करता है। इसमें धर्मनगरी हरिद्वार में गुजराती संस्कृति के अनुरूप नवरात्र महोत्सव का आयोजन किया जाता है। इस वर्ष भी हरिद्वार गुज्जु परिवार को गुजरात के मुख्यमंत्री श्री भूपेंद्र पटेल जी ने पत्र लिखकर प्रोत्हासित किया है। इस तरह किया जाता है गरबा गरबा गुजरात में प्रचलित एक लोकनृत्य है। आजकल इसे पूरे देश में आधुनिक नृत्य कला में स्थान प्राप्त हो गया है। इस रूप में उसका कुछ परिष्कार हुआ है फिर भी उसका लोकनृत्य का तत्व अक्षुण्ण है। आरंभ में देवी के निकट सछिद्र घट में दीप ले जाने के क्रम में यह नृत्य होता था। इस प्रकार यह घट दीप गर्भ कहलाता था। वर्णलोप से यही शब्द गरबा बन गया। आजकल गुजरात में नवरात्रों के दिनों में लड़कियां कच्चे मिट्टी के सछिद्र घड़े को फूल पत्तियों से सजाकर उसके चारों ओर नृत्य करती हैं। सौभाग्य का प्रतीक है गरबा गरबा सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है और अश्विन मास की नवरात्रों को गरबा नृत्य उत्सव के रूप में मनाया जाता है। नवरात्रों के बाद शरद पूर्णिमा को अंतिम गरबा का आयोजन होता है। धर्मनगरी हरिद्वार का अद्भुत गुजराती रंग अपने आप में बहुत ही मनमोहक होता है, अपनी भूमि से कोसों दूर रहने के बाद भी अपनी संस्कृति एवं परंपरा को आगे बढ़ाने की सोच के साथ हरिद्वार में रहने वाला हरिद्वार गुज्जू परिवार 2007 से निरंतर कराता आ रहा हैं। गुजराती समाज के राजेश पाठक ,लक्ष्मण भाई, पवन भाई, लहर भाई, प्रितेश भाई, मोंटूभाई, जेराम भाई, मेहुल भाई, राजा भाई, दीपक भाई ठक्कर, बृजेश पटेल, परेश भाई, राजू भाई, अजय गढ़वी, दामोदर महाराज, जय सोनी सहित बड़ी संख्या में गुजरती समुदाय से जुड़े बहने और बच्चे भाग ले रहे हैं।इस गरबा महोत्सव में देहरादून ,ऋषिकेश ,लक्सर ,रोशनाबाद सहित आसपास के गुजरती श्रद्धालु प्रतिदिन भाग ले रहे है।

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