किताबें खुद चुप रहती हैं परन्तु हमें बोलना सिखाती है स्वामी चिदानन्द सरस्वती


साहित्य, संस्कृति एवं कला महोत्सव 2024, थानो, देहरादून (उत्तराखण्ड) में आयोजित सम्मान एवं समापन समारोह में परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष, स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी का पावन सानिध्य, उद्बोधन और दिव्य आशीर्वाद प्राप्त हुआ।

रिपोर्ट  - allnewsbharat.com

ऋषिकेश, 27 अक्टूबर। साहित्य, संस्कृति एवं कला महोत्सव 2024, थानो, देहरादून (उत्तराखण्ड) में आयोजित सम्मान एवं समापन समारोह में परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष, स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी का पावन सानिध्य, उद्बोधन और दिव्य आशीर्वाद प्राप्त हुआ। इस आयोजन में माननीय श्री गजेन्द्र सिंह शेखावत जी, मंत्री संस्कृति एवं पर्यटन, भारत सरकार; श्रीमती रितु खण्डूड़ी, विधान सभा अध्यक्ष, उत्तराखंड; श्री संतोष चौबे, कुलाधिपति टैगोर विश्वविद्यालय; श्री संतोष तनेजा, अध्यक्ष संकल्प फाउंडेशन, श्रीमती आरूषी निशंक, विदुषि निशंक, 40 से अधिक देशों से आये लेखक और विश्व के अनेक देशों से आये विशिष्ट अतिथियों ने सहभाग किया। स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि साहित्य, संस्कृति और कला हमारे समाज की धरोहर हैं। हमें इन्हें सहेज कर रखना होगा क्योंकि इनके माध्यम से ही समाज में सकारात्मक परिवर्तन सम्भव है। श्री निशंक जी ने हिमालय, गंगा, उत्तराखंड व पहाड़ की संस्कृति को जीवंत व जागृत रखने के लिये विलक्षण रचनायें की जो आने वाली पीढ़ियों के लिये प्रेरणा का स्रोत है। स्वामी जी ने कहा कि किताबें खुद चुप रहती हैं परन्तु हमें बोलना सिखाती है। किताबें स्वयं एक शांत साथी होती हैं, लेकिन उनके पन्नों में छुपे ज्ञान और विचार हमें बोलने, सोचने और समझने की नई दिशा देते हैं। हर पृष्ठ पर नई कहानियों, अनुभवों और भावनाओं के माध्यम से, किताबें हमें जीवन जीने की कला सिखाती हैं। स्वामी जी ने कहा कि हिमालय की इन शान्त वादियों में सदियों से साहित्य का सृजन होते आ रहा है। हिमालय केवल प्राकृतिक सुंदरता का प्रतीक नहीं है, बल्कि यह सांस्कृतिक, पर्यावरणीय, आर्थिक और साहित्य की दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। दुनिया की किसी भी पर्वत श्रृंखला में समाज को जीवन, साहस और समृद्धि प्रदान करने की वह शक्ति नहीं है, जितनी हिमालय के पास है। स्वामी जी ने कहा कि हिमालय का संबंध न केवल भारत से है, बल्कि यह भारत की आत्मा से जुड़ा हुआ है। इस पर्वत श्रृंखला ने भारतीय मूल्यों को सहेज रखा है, और अब हमें इसके प्राकृतिक सौंदर्य और सांस्कृतिक विरासत को संजो कर रखना होगा क्योंकि हिमालय है तो हम हैं, और हिमालय है तो गंगा है।

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